एडीआर की पॉडकास्ट श्रृंखला की दूसरी कड़ी में भारतीय चुनावों में धन और बाहुबल पर चर्चा की गई है। यह कई वर्षों के दौरान चुनाव परिणामों के एडीआर के विश्लेषण के प्रमुख निष्कर्ष प्रदान करता है, जो करोड़पति विजेताओं की बढ़ती प्रमुखता और घोषित आपराधिक मामलों के साथ सांसदों और विधायकों के चुनाव की बेहतर समझ में मदद करते हैं।

नोट: आप हमें अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणी और सुझाव [email protected] पर भेज सकते हैं।

पॉडकास्ट हिंदी स्क्रिप्ट

प्रस्तावना:-00:28

सभी को नमस्कार, मेरा नाम नविन सिंह है, और मैं एडीआर में एक प्रोग्राम एसोसिएट हूँ।  एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला के दूसरे एपिसोड में आपका स्वागत है। यह एपिसोड चुनावों में धनबल और अपराधीकरण पर है। इस अनुभाग में, हम चुनावों में करोड़पति विजेताओं की बढ़ती प्रमुखता और सांसदों और विधायकों द्वारा घोषित आपराधिक मामलों पर चर्चा करेंगे।

अवलोकन:-01:50

2004 से 2020 तक भारत के चुनावी परिदृश्य का एडीआर का विश्लेषण राजनीतिक प्रणाली में धनबल और बाहुबल की बढ़ती शक्ति के बीच एक चौंकाने वाली जानकारी प्रदान करता है। इस अवधि के दौरान भारतीय चुनाव आयोग को दाखिल किए गए स्वंय घोषित 1,49,375 शपथपत्रों में से 17.5 प्रतिशत उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले लंबित थे, और 10.6 प्रतिशत उम्मीदवारों के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले लंबित थे जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, भ्रष्टाचार, जबरन वसूली इत्यादि से सम्बंधित अपराध शामिल हैं। यह राजनीतिक दलों की आपराधिक पृष्टभूमि वाले उम्मीदवारों को तैयार करने की इच्छा दर्शाता है। यह तेलंगाना राष्ट्र समिति के लिए 44 प्रतिशत से लेकर असम गण परिषद के लिए 4 प्रतिशत तक है-जिसके प्रभाव नीति-निर्माण, सुशासन और सार्वजानिक वितरण प्रणाली पर सबसे अधिक तीव्रता से महसूस किए जाते हैं। 2004 से 2020 के बीच, आपराधिक मामले वाले 26,073 उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति ₹ 4.39 करोड़ और गंभीर आपराधिक मामले वाले उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति ₹ 4.74 करोड़ थी। इसके अलावा, एडीआर के विश्लेषण के अनुसार, साफ छवि वाले उम्मीदवारों की चुनाव जीतने की संभावना केवल 8 प्रतिशत थी, जबकि आपराधिक मामले वाले उम्मीदवारों की चुनाव जीतने की संभावना 19 प्रतिशत थी-जिससे धन, अपराध और एक सकारात्मक चुनाव परिणाम के बीच सम्बन्ध पर प्रकाश डाला गया।

विषय की प्रासंगिकता:-01:46

2019 के आम चुनावों में, 43 प्रतिशत सांसदों के ऊपर आपराधिक मामले थे, इनमें से 29 प्रतिशत  के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले थे। यह स्थिति रातोंरात विकसित नहीं हुई, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई गई अभियान की रणनीतियों और मतदाताओं द्वारा दिखाए गए मतदान के व्यवहार का परिणाम है, जिसने अधिकतम संपत्ति वाले और आपराधिक पृष्टभूमि वाले उम्मीदवारों को राजनीति में प्रवेश करने और चुनाव जीतने की अनुमति दी।

दिलचस्प बात यह है, कि एडीआर द्वारा शासन और मतदाता के व्यवहार पर किए गए 2018 सर्वेक्षण से पता चला था कि लगभग 98 प्रतिशत भारतीय मतदाता संसद और राज्य विधानसभा में आपराधिक मामलों वाले राजनेताओं को नहीं चाहते हैं। सर्वेक्षण के निष्कर्षो से यह भी पता चला है कि आपराधिक पृष्टभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनाव की  निरंतर प्रवृत्ति निम्न कारकों से उत्पन्न होती है जैसे (a) चुनाव में उम्मीदवार का खर्च, (b) उम्मीदवार के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले न होना, (c) उम्मीदवार एक बाहुबली राजनीतिक व्यक्ति है, (d) मतदाताओं की जाति/धर्म से सम्बंधित उम्मीदवार, (e) उम्मीदवार द्वारा किए गए पिछले काम ने लोगों को लाभ पहुँचाया हो, (f) और सबसे महत्वपूर्ण बात, मतदाताओं को उम्मीदवार की पृष्टभूमि के विवरण के बारे में जागरूकता की कमी है।

विपरीत दृष्टिकोण को देखते हुए, भारत में चुनावी प्रणाली की जटिल प्रकृति को समझने के लिए, हमने, एडीआर में, कई वर्षों के दौरान चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया है।

तो आइए नजर डालते है कुछ प्रमुख निष्कर्षों पर:-03:08

हमारे शीर्ष प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित तथ्यों को प्रकट करते हैं -

  1. 2019 के हालिया आम चुनावों में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) ने भारतीय चुनावों के इतिहास में सबसे बड़ी जब्ती करते हुए नकदी, शराब, कीमती धातुओं, आदि को जब्त किया। जिसकी कीमत कुल ₹ 3,475 करोड़ थी।
  2. 2004 से 2020 के बीच विश्लेषित किए गए 15,032 सांसदों और विधायकों में से 4,870 (32.4 प्रतिशत) ने अपने ऊपर लंबित आपराधिक मामले घोषित किये थे, जबकि 2,795 (18.6 प्रतिशत) ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये थे जिनमें हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार, जबरन वसूली इत्यादि से सम्बंधित अपराध शामिल थे।
  3. सांसदों और विधायकों की औसतन संपत्ति ₹ 7.05 करोड़ थी, वही उपविजेताओं की औसतन संपत्ति ₹ 6.32 करोड़ और तीसरे स्थान पर रहने वालों की औसतन संपत्ति ₹ 1.24 करोड़ थी - जो स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि अधिकतम संपत्ति वाले उम्मीदवारों की चुनाव जीतने की संभावना अधिक है।
  4. विशेष रूप से, 2004 से 2020 के बीच 1,49,375 उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति ₹ 2.30 करोड़ थी और सांसदों/विधायकों की औसतन संपत्ति ₹ 7.05 करोड़ थी। आपराधिक मामलों वाले सांसदों/विधायकों की औसतन संपत्ति ₹ 9.11 करोड़ थी, और गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों/विधायकों की औसतन संपत्ति ₹ 9.44 करोड़ थी।
  5. यह भी देखा गया कि निर्दलीय उम्मीदवारों में, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति ₹ 83.5 लाख थी, सांसदों/विधायकों की ₹ 7.3 करोड़, आपराधिक मामलों वाले सांसदों/विधायकों की ₹ 9.74 करोड़ और गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों/विधायकों की ₹ 9.47 करोड़ थी।
  6. जून 2020 तक, कुल 4807 वर्तमान सांसदों और विधायकों का विश्लेषण किया गया। इसमें से 1460 (30 प्रतिशत) सांसदों और विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये थे और 688 (14 प्रतिशत) सांसदों और विधायकों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये थे।

निष्कर्ष:-01:24

इससे चुनाव और लोकतंत्र की प्रकृति पर कई सवाल खड़े होते हैं। आंकड़ों ने चुनावी प्रक्रियाओं में अपराध और धनबल के बीच घनिष्ट सम्बन्ध का खुलासा किया है, जिसमें सभी क्षेत्रों के लिए अनावश्यक परिणाम हैं- बड़े पैमाने पर आम जनता के लिए उम्मीदवारों, सरकारों और प्रशासन से अधिकार। भ्रष्ट आचरण में संलग्न लोग सुशासन के लिए खतरा पैदा करते हैं, और शासन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। कोई भी उम्मीदवार जो चुनावों में ज्यादा खर्च करता है, जीतने के बाद अपने निवेश को फिर से भरने पर ध्यान केंद्रित करेगा, या जिन्होंने उसे चंदा दिया है, उनके पक्ष में काम करेगा।

इसलिए, भारत की राजनीतिक प्रक्रियाओं में सुधारों की शुरुआत करना समय की आवश्यकता है। यदि आप इस मामले में एडीआर के योगदान के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आप हमारी वेबसाइट www.adrindia.org पर पॉडकास्ट कि सदस्यता लें: और [email protected] पर अपनी प्रतिक्रिया हमें लिखना ना भूलें, हम एक और अदभुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर से हाज़िर होंगे।

तब तक के लिए बने रहिये और सुनने के लिए धन्यवाद।

 

 

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