एनजीओ ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक 'तटस्थ और स्वतंत्र समिति' के गठन की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने अपने लाभ के लिए योजनाबद्ध सावधानीपूर्वक बनाई गई चयन प्रक्रिया में हिस्सा लिया है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। गैर सरकारी संगठन ने दावा किया है कि उनकी नियुक्ति मनमाने तरीके से की गई है और चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता और स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया है।
केंद्र और चुनाव आयोग पर लगाया चयन प्रक्रिया में भाग लेने का आरोप
एनजीओ ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक 'तटस्थ और स्वतंत्र समिति' के गठन की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने अपने लाभ के लिए योजनाबद्ध सावधानीपूर्वक बनाई गई चयन प्रक्रिया में हिस्सा लिया है। याचिका में कहा गया है, 19 नवंबर 2022 की अधिसूचना के जरिए चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति को चुनौते देते हुए जनहित में रिट याचिका इस आधार पर दायर की जा रही है कि नियुक्ति मनमानी है और भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता व स्वतंत्रता का उल्लंखन करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च के अहम फैसले में क्या कहा था?
शीर्ष कोर्ट ने अपने दो मार्च के फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की सदस्यता वाली समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे, ताकि चुनाव की शुचिता बनी रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस बात से हैरान है कि नौकरशाह अरुण गोयल ने पिछले साल 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे किया जबकि उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं थी।
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजीव कुमार की 15 मई, 2022 से मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के बाद चुनाव आयुक्त का पद रिक्त हो गया था। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति स्पष्ट रूप से इस आधार पर की गई थी कि नियुक्ति में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि कोई विशिष्ट कानून नहीं है। न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र की इस दलील पर गौर किया कि एक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए 18 नवंबर, 2022 को मंजूरी मांगी गई थी और उसी दिन भारत सरकार के सचिव के पद पर सेवारत और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों के डाटाबेस को शामिल किया गया था। इसे एक्सेस किया गया था।
हैरान हैं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए कैसे किया आवेदन..
उन्होंने कहा, "उसी दिन यानी 18 नवंबर, 2022 को एक नोट डाला गया था, जिसमें कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के विचार के लिए चार नामों के पैनल का सुझाव दिया था...इसमें कहा गया है- नियुक्ति करने वाले को दिसंबर 2022 में सेवानिवृत्त होना था और उसने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और वह समिति के चार सदस्यों में सबसे युवा पाया गया... आश्चर्य की बात नहीं है, उसी दिन, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति को भी अधिसूचित किया गया था। हम इस बात से थोड़े हैरान हैं कि अधिकारी ने 18 नवंबर, 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे किया था, अगर उन्हें उनकी नियुक्ति के प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं थी।'
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्त या मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए कानून के अनुसार छह साल की अवधि होनी चाहिए क्योंकि इससे अधिकारी के पास कार्यालय की जरूरतों के अनुरूप खुद को तैयार करने और अपनी स्वतंत्रता का दावा करने के लिए पर्याप्त समय होगा।