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Source
Amar Ujala
Date
City
New Delhi

चुनाव सुधारों पर काम करने वाले नेशनल इलेक्शन वॉच डॉग 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' (एडीआर) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 2014 से 2021 के बीच हुए चुनाव में 222 उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। वह दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए।  

इस समय अवधि में किसी पार्टी को सबसे ज्यादा छोड़ने वाले उम्मीदवारों की यह अधिकतम संख्या है। एडीआर ने बुधवार को इस बाबद जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के अनुसार इसी समयावधि में फिर से चुनाव लड़ने वाले 1133 में से 253 यानी 22 फीसदी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण करके चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस के हाथ का साथ 115 यानी 10 प्रतिशत ने थामा। इस चरण में 65 जो कि छह फीसदी हैं, ने हाथी की सवारी की।

इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2021 के बीच विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ा। इस दौरान 153 यानी 14 प्रतिशत उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ने और अलग पार्टी में शामिल होने के लिए बहुजन समाज पार्टी से दामन छुड़ाया।

इसी कड़ी में बात करें विश्लेषण की तो रिपोर्ट में कहा गया कि 2014 से 21 के बीच एक पार्टी छोड़ने वाले अधिकतम 177 सांसद-विधायक यानी 35 फीसदी कांग्रेस से थे। उन्होंने एन चुनाव के वक्त कांग्रेस को छोड़ा व दूसरी पार्टियों में चले गए। जबकि भाजपा के भी 33 सांसद- विधायकों यानी 7 प्रतिशत ने पार्टी छोड़ी और अन्य दल की सदस्यता ग्रहण की। इससे साफ जाहिर है कि पिछले सात सालों में भारतीय जनता पार्टी, अपने दलों को छोड़कर आने वाले राजनेताओं का पसंदीदा आश्रय स्थल रहा। इसके बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का नंबर आता है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक इस समय अवधि में राजनीतिक दलों को बदलने वाले 500 सांसदों व विधायकों में से 173 यानी 35 फीसदी भाजपा में शामिल हो गए। 61 सांसद और विधायक,  जो कि 12 फीसदी हैं, कांग्रेस में शामिल हुए। 31 प्रतिशत सांसद व विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए।

एडीआर ने 1133 उम्मीदवारों और 500 सांसदों-विधायकों के हलफनामों का विश्लेषण किया।  जिसमें उसने पाया कि 2014 के बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टियां बदलने का रुझान काफी बढ़ा है और दल बदल कर चुनाव लड़ने वाले नेताओं के फेहरिस्त भी लगातार लंबी होती जा रही है। इतना ही नहीं दल बदलकर चुनाव लड़ने वाले 500 में 419 सांसद और विधायक, जो कि कुल संख्या का 84 फीसदी हैं धनपति हैं। इनकी अधिकतम संपत्ति 895 करोड़ और न्यूनतम संपत्ति 226 करोड़ है। इनमें से केवल तमिलनाडु, मिजोरम और मध्य प्रदेश में एक-एक उम्मीदवार ऐसा है जिसकी संपत्ति सबके कम सात हजार से बीस हजार तक है।