चुनाव आयोग की नजर राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर है। आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि वह दलों को मिलने वाले गुप्त चंदे की सीमा 2000 रुपये निर्धारित करे। अभी यह 20000 रुपये है। यानी 20 हजार रुपये का चंदा कोई भी व्यक्ति किसी पार्टी को दे सकता है। कोई भी दल इसका स्रोत बताने के लिए बाध्य नहीं है। सियासी दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए पहले ही सुप्रीम कोर्ट में मांग उठ चुकी है। लेकिन सरकार ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया कि यह कदम व्यावहारिक नहीं होगा।
75% चंदे के स्रोत की स्पष्ट जानकारी नहीं
राजनीतिक दलों के चंदे के बारे में पारदर्शिता के अभाव की बात कई साल से है। कुछ साल पहले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच कमीशन ने संयुक्त अध्ययन में पाया था कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे में 75 फ़ीसदी के स्रोत की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है।
कहां से आया, नहीं मांग सकते आरटीअाई
आईटी ऐक्ट, 1961 के सेक्शन 13A राजनीतिक दलों को टैक्स से छूट प्राप्त है। इसके अलावा राजनीतिक दल सूचना का अधिकार (आरटीआई) के दायरे में भी नहीं आते हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर भाजपा, कांग्रेस, वाम दलों समेत सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को ‘सार्वजनिक संस्था’ घोषित करने की अपील की गयी तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने से उनके सहज संचालन पर असर पड़ेगा। साथ ही सरकार ने कहा कि इससे राजनीतिक विरोधियों को बुरे इरादों के साथ जानकारियां हासिल करने का हथियार भी मिल जाएगा। पिछले कुछ सालों से लगातार राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग चल रही है।
चुनाव आयोग भी नहीं करा सकता जांच
राजनीतिक दलों की आमदन और खर्चे के ब्योरे पूरी तरह पारदर्शी नहीं होते हैं। पहले एक लिमिट थी 20 हज़ार रूपये तक चंदा लेने की, लेकिन अब किसी भी सीमा तक ले सकते हैं। वो पैसा कहां से ले रहे हैं, किस तरह से ले रहे हैं, यह चंदा लेने के बहुत सारे मामलों में सार्वजनिक नहीं होता है। चुनाव आयोग अपने लेखा विभाग से इसकी जांच तक नहीं करा सकता है।
ममता उठा चुकी हैं सवाल
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नोटबंदी में राजनीतिक दलों को छूट दिए जाने पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि नियम हर किसी के लिए एक जैसे होने चाहिए। दलों को छूट नहीं मिलनी चाहिए।
दूसरे देशों में यह है व्यवस्था
ब्रिटेन
प्रमुख रूप से चंदा देने के तीन प्रमुख स्रोत हैं-सदस्यता, चंदा और सरकारी खर्चे पर चुनाव (स्टेट फंडिंग)। विवाद की मुख्य वजह यह है कि देश के राजनीतिक दलों पर आरोप है कि वे कुछ विशेष धनी दाताओं पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं।
जर्मनी
6700 पौंड से अधिक दिए जाने वाले सभी चंदे का ब्योरा देना आवश्यक है। यूरोपीय यूनियन या किसी कंपनी में यदि एक जर्मन नागरिक की हिस्सेदारी यदि 50 प्रतिशत से ज्यादा है तो वह 336 पौंड का चंदा दे सकता है। प्रमुख रूप से सरकारी खर्चे पर चुनाव होते हैं।
फ्रांस
1995 से व्यापारिक समुदाय से चंदे लेने पर पाबंदी लगा दी गई है। यहां सरकारी खर्चे पर चुनाव होते हैं। चुनाव के दौरान एक व्यक्ति 4600-7500 यूरो के बीच चंदा दे सकता है। इस पर टैक्स में छूट भी मिलती है।
अमेरिका : राष्ट्रीय चुनावी अभियानों में चंदा देने के संबंध में नियंत्रण किया गया है। एक नागरिक प्रत्येक चुनाव अभियान में एक हजार डॉलर से अधिक की राशि नहीं दे सकता। इसी तरह एक नागरिक साल भर में चुनावी अभियानों के लिए 25 हजार डॉलर से अधिक नहीं दे सकता। प्रत्याशियों की कमेटियों, राजनीतिक दलों की कमेटियों ओर राजनीतिक कार्यवाही कमेटियों (पीएसी) को प्राप्ति और खर्च के विषय में नियमित अंतराल पर रिपोर्ट देनी होती है।
ऑस्ट्रेलिया : देश के निर्वाचन आयोग के पास सभी दलों को प्राप्त होने वाले चंदे का ब्योरा पेश करना अनिवार्य है। किसी प्रत्याशी को यदि कोई नागरिक या संगठन 125 डॉलर से अधिक या किसी सीनेट समूह को 625 डॉलर से अधिक देता है तो उसके नाम और पते को घोषित करना होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी पंजीकृत राजनीतिक दल को 935 डॉलर से अधिक का चंदा देता है तो उसको आयकर रिटर्न में इसको दिखाना होता है।
आयरलैंड : एक व्यक्ति सालाना 4,500 पौंड से अधिक की राशि चंदे के रूप में नहीं दे सकता। राजनीतिक दलों को 3,600 पौंड से अधिक का चंदा मिलने पर ब्योरा देना होता है।
10 साल में 478 फीसदी बढ़ी आय
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2004 और लोकसभा चुनाव 2014 के बीच राजनीतिक दलों को मिले चंदे में 478 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2004 के लोकसभा चुनाव में 38 राजनीतिक दलों ने 253.46 करोड़ रुपये चंदा एकत्र किया, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की कुल आय 1463.63 करोड़ रुपये रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में 42 दलों ने हिस्सा लिया था, जबकि 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 45 हो गया। इसके अलावा 2009 के लोकसभा चुनाव में 41 राजनीतिक दलों ने चंदे के रूप में 638.26 करोड़ रुपये एकत्र किए।
चेक कम, कैश ज्यादा
2004 से 2015 के बीच हुए 71 विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों ने दान के रूप में कुल 3368.06 करोड़ रुपये जमा किया था। इसमें 63 फीसदी हिस्सा कैश से आया। वहीं 2004, 2009 और 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में चेक के जरिए सबसे ज्यादा चंदा (1,300 करोड़ यानी 55%) इकट्ठा किया गया, जबकि, 44 फीसदी राशि 1,039 करोड़ रुपये कैश में मिले। 2004 और 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्रीय दलों द्वारा चुनाव आयोग को जमा किए गए चुनावी खर्च विवरण के अनुसार समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस को सबसे ज्यादा चंदा मिला है और इन्हीं दलों से सबसे ज्यादा खर्च किया है। पिछले तीन लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और शिरोमणि अकाली दल को सबसे ज्यादा चंदा मिला है और इन्हीं दलों ने सबसे ज्यादा खर्च भी किया है। आईएडीआर के रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में चुनावी ट्रस्टों ने 177.55 करोड़ चंदे के रूप में कमाए हैं और उनमें से 177.40 करोड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दिया है।
151% बढ़ा दलों का चंदा 2014-15 में
622 करोड़ मिले थे राष्ट्रीय दलों को
437 करोड़ चंदा मिला था भाजपा को
141 करोड़ चंदा मिला था कांग्रेस को