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Date: 
28.08.2018
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नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा) : 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने देश से यह वायदा किया था। खूब तालियां बटोरी थी और खूब वाह वाह भी लूटी थी। सुनने में बहुत अच्छा लगा था। आज उस बात को चार साल से ज़्यादा हो गया है। मोदी सरकार ने भी वही रवैया अपनाया जो पूर्ववर्ती सरकारें अपनाती रही हैं। वायदा तो तोड़ने के लिए करते हैं।

PunjabKesariदागी जनप्रतिनिधियों की अयोग्यता को लेकर दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। लेकिन इसपर फैसला अभी नहीं आया है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे जनप्रतिनिधियों को दोषसिद्धि से पहले ही अयोग्य घोषित किया जाए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इन जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सरकार को जो पक्ष रखा वह प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव से पूर्व किये वायदे से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते हैं।

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SC और सरकार आमने सामने:

  • सुप्रीम कोर्ट का सवाल :
  • - क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे?
  • सरकार का जवाब 
  • - इस मुद्दे पर सिर्फ संसद ही फैसला ले सकती है, यह अदालत के दायरे में नहीं आता । इस मुद्दे पर सिर्फ संसद ही फैसला ले सकती है।
  • सुप्रीम कोर्ट का सवाल:
  • - अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ रेप, मर्डर और करप्शन जैसे गंभीर अपराध में आरोप तय होते हैं तो उसे चुनाव लड़ने से रोका जाए?
  • सरकार का जवाब 
  • -कानून के मुताबिक एक व्यक्ति तब तक निर्दोष होता है, जब तक उसे दोषी करार न दिया जाए।
  • -यह पॉलिसी मैटर है और क्योंकि ज्यादातर मामलों में नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई फैसला न सुनाया जाए।

अगले आंकड़े देखकर आप समझ जायेंगे कि मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाज़ी क्यों नागवार गुज़री। पिछले पांच सालों में बीजेपी ने ही सबसे ज़्यादा दागी उम्मीदवारों को पार्टी की टिकट दी है। 

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एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक:

  • पिछले पांच साल में बीजेपी ने सबसे ज़्यादा (47) अपराधियों को टिकट दिया।
  • दूसरे नंबर पर बसपा रही, उसने 35 अपराधियों को टिकट दिया।
  • तीसरे नंबर पर कांग्रेस है जिसने 24 अपराधियों को टिकट दिए।
  • चुनाव सुधारों सहित अन्य कई मसलों को लेकर सोमवार (27 अगस्‍त) को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक ईवीएम बनाम बैलट पेपर होकर रह गई। यह भारत का दुर्भाग्य है कि हमारे सांसदों ने चुनाव सुधारों में हमेशा रोड़े ही अटकाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2017 को केंद्र सरकार को 1581 सांसदों और विधायकों से जुड़े मुकदमों की सुनवाई के लिए 12 विशेष अदालत बनाने और इनमें 1 मार्च से सुनवाई शुरू करने का आदेश दिया था। अभी तक सिर्फ दो अदालत ही बन पाई हैं। जब मामला अपने हितों की रक्षा का हो तो सभी पार्टियों के सुर एक हो जाते हैं। वैसे यह सब कुछ संसद की गरिमा को बचाने के नाम किया जाता है। जाते जाते फिर से प्रधानमंत्री जी का 2014 में  देश को किया वायदा सुन लीजिए। अब भी सुन कर अच्छा लगे तो ज़रूर बताइयेगा। 
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