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पांच राज्यों में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चार में जीत हासिल की, और पंजाब में आम आदमी पार्टी शानदार जीत दर्ज कराकर सरकार बनाने जा रही है. हालांकि, विधानसभा चुनाव में जीते विधायकों के हलफनामों का विश्लेषण करने पर पता चला कि इन चुनावों में राजनीतिक दलों ने धनबल और बाहुबल को काफी तरजीह दी है.

पांच राज्यों के 690 नवनिर्वाचित विधायकों में से 76 (11 फीसदी) महिलाएं हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों की तुलना में यह संख्या ज्यादा है, जब केवल 55 (8 फीसदी) महिला प्रतिभागियों ने विधानसभा में प्रवेश किया था. इस वर्ष महिलाओं की भागीदारी भी अधिक है, क्योंकि 2017 की तुलना में अधिक महिलाओं (760) ने चुनाव लड़ा था, जब 655 महिला उम्मीदवार 2017 में मैदान में थीं. 

पंजाब जहां अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) ने 117 विधानसभा सीटों में से 92 पर भारी जीत हासिल करके विपक्ष को पछाड़ दिया, वहां महिला विधायकों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. 2017 के चुनावों में सिर्फ छह की तुलना में इस बार यहां 13 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल.

धनी विधायकों की संख्या में भी इजाफा

इस बार अधिक महिलाओं के चुने जाने के अलावा धनी विधायकों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. एक करोड़ से ज्यादा की कुल संपत्ति वाले उम्मीदवार 2017 में 518 (75%) से बढ़कर 2022 में 579 (84 प्रतिशत) हो गए हैं. पंजाब को छोड़कर दूसरे राज्यों के जीतने वाले विधायकों की औसत संपत्ति में भी उछाल देखा गया है.

संपत्ति के मामले में इस राज्य के विधायक आगे 

पंजाब के विजयी विधायक अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में थोड़े कम पैसेवाले हैं, उनकी औसत संपत्ति मामूली रूप से घटकर 10.5 करोड़ रुपये हो गई है जो कि 2017 में 11.8 करोड़ रुपये थी. दूसरी ओर, गोवा विधानसभा के नवनिर्वाचित विधायकों की औसत संपत्ति लगभग दोगुनी होकर 10.9 करोड़ रुपए से बढ़कर 20 करोड़ रुपए हो गई है.

दागियों की संख्या में इजाफा

- धन के साथ-साथ बाहुबल भी आता है. इस बार चुने गए प्रतिनिधियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के आंकड़ों को देखें तो पिछली विधानसभा की तुलना में दागी सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ है.

- निर्वाचित विधानसभा सदस्यों में लगभग हर दूसरे विधायक ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों को हलफनामा में घोषित किया है. कुल मिलाकर दागी सदस्यों की संख्या 690 में से 312 (45 फीसदी) हो गई है जबकि 2017 में यह 196 (28.4%) थी.

- राज्य-वार डेटा से पता चलता है कि मणिपुर ने ऐसे सदस्यों को सदन में भेजने में काफी उछाल देखा है. 2022 में यह संख्या 2017 के केवल दो से बढ़कर 14 हो गई. इसके बाद पंजाब है, जहां दागी विधायकों की संख्या 2017 में 16 से बढ़ कर 2022 में 58 हो गयी है.

- पंजाब में पिछले चुनावों के आंकड़ों को देखें तो इस बार आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को साफ छवि वाले किसी उम्मीदवार पर सिर्फ थोड़ा बहुत ही फायदा मिला है. पिछले चुनावों में यह प्रवृत्ति रही है कि दागी उम्मीदवारों या करोड़ों की संपत्ति वाले किसी व्यक्ति के स्वच्छ रिकॉर्ड या मामूली संपत्ति वाले व्यक्ति पर जीत की संभावना अधिक होती है. यह उत्तर प्रदेश के लिए खास तौर पर सच है.

अनुभव के मामले में उत्तराखंड आगे 

पहले के चुनावों की तरह इस बार भी लोगों ने युवा उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अनुभवी उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी. 2017 की तुलना में निर्वाचित सदस्यों की औसत आयु में वृद्धि हुई है. गोवा और पंजाब के अलावा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जीतने वाले विधायकों की औसत उम्र में इजाफा हुआ है. सबसे वरिष्ठ विधायक उत्तराखंड के हैं, जहां की औसत उम्र करीब 56 साल है.