पिछले पांच सालों में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में करीब 1.29 लोगों ने किसी पार्टी की तुलना में नोटा को बेहतर विकल्प चुना है. चुनाव अधिकार निकाय एडीआर ने गुरुवार को यह जानकारी दी. नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW)और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) पिछले चार सालों में हुए अलग-अलग चुनावों में नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) द्वारा मिले वोटों की संख्याओं का विश्लेषण किया है.
रिपोर्ट की अनुसार राज्य के विधानसभा चुनावों में नोटा को लगभग 64.53 लाख वोट प्राप्त हुए थे. रिपोर्ट में बताया गया हैं कि नोटा को कुल मिलाकर 65,23,975 लाख वोट प्राप्त हुए. लोकसभा चुनाव में नोटा वोटों में सबसे ज्यादा वोट यानी 51,660 बिहार के गोपालगंज (एससी) निर्वाचन क्षेत्र में थे और सबसे कम नोटा वोट यानी 100 लक्षद्वीप में थे.
साल 2020 में राज्य विधानसभा चुनावों में नोटा को सबसे ज्यादा लोगों ने चुना था. बिहार में साल 2020 में नोटा पर राज्य विधानसभा चुनावों में 7,06,252 वोट नोटा पड़े. जबकि एनसीटी दिल्ली में नोटा पर 43,108 वोट हुए. साल 2022 में नोटा ने सबसे कम वोट प्रतिशत हासिल किया. गोवा के साथ-साथ पांच अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे कम लोगों ने नोट को चुना है. मणिपुर में 10,349 वोट, पंजाब में 1,10,308, गोवा में 10,629 वोट, उत्तराखंड 46,840, उत्तर प्रदेश में 6,37,304 वोट नोटा पर पड़े हैं.
राज्य विधानसभा चुनावों; 2019 में नोटा ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 7.42 लाख वोट प्राप्त किए, और साल 2018 के मिजोरम विधानसभा चुनाव में सबसे कम वोट नोटा को यानी 2,917 वोट मिले. 2018 में छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा चुनाव में नोटा ने सबसे ज्यादा वोट शेयर यानी 1.98 फीसदी हासिल किया. जबकि, दिल्ली राज्य विधानसभा चुनाव, 2020 और मिजोरम राज्य विधानसभा चुनाव, 2018 दोनों में वोट शेयर का सबसे कम प्रतिशत यानी 0.46 प्रतिशत हासिल किया.