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मनोज व्यास। रायपुर. राजनीति में यह जुमला चलता है कि जिसके पास धन और बाहुबल है, उसका जीतना तय है, लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता ने इसे खारिज कर दिया। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में लोगों ने धनवान लोगों को नकार दिया तो कम पैसे वालों के सिर जीत का सेहरा बांध दिया। धन या बाहुबल के बजाय लोगों ने चेहरों पर जोर दिया। यही वजह है कि इस बार भी दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कई सिटिंग एमएलए और रनरअप के बजाय नए चेहरों को मौका देने जा रहे हैं। 

पिछली बार भी कई दिग्गजों को करना पड़ा था हार का सामना

  1. पिछली बार विधानसभा चुनाव से पहले ही एंटी इनकंबेंसी की स्थिति देखकर भाजपा ने कई नए चेहरों को मौका दिया। इसके बाद भी ननकीराम कंवर, हेमचंद यादव, लता उसेंडी, रामविचार नेताम आदि मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, उपाध्यक्ष नारायण चंदेल सहित कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा था। यही स्थिति कांग्रेस की भी रही। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे, धर्मजीत सिंह, मोहम्मद अकबर, रामपुकार सिंह, शक्राजीत नायक जैसे बड़े नेता परास्त हो गए थे। 

    छत्तीसगढ़ चुनाव : अधिक संपत्ति वाले हार गए, नए को मिला मौका

     

  2. महासमुंद में पहली बार निर्दलीय की जीत

    महासमुंद में पहली बार निर्दलीय डॉ. विमल चोपड़ा को विधायक चुना। भाजपा के पूनम चंद्राकर तीसरे नंबर पर थे। खुज्जी में भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे, वहीं नवागढ़ में कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी। चंद्रपुर और पामगढ़ में कांग्रेस तो पाली तानाखार और जैजैपुर में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही।