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विधानसभा चुनावों में भाजपा इतनी व्यस्त है कि आखिरी तारीख बीतने के बाद भी चुनाव आयोग को 2017-18 के चंदे का ब्यौरा अभी तक नहीं सौंपा है। इस सूची में तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है। वहीं चुनावी चंदे में पारदर्शिता की मांग करने वाली आम आदमी पार्टी ने भी चंदे का ब्यौरा नहीं सौंपा है। खास बात यह है कि किसी भी दल ने इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले धन के बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी है।   चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को 2017-18 के दौरान मिले चंदे की राशि का विवरण देने के लिए पहले 30 सितंबर तारीख तय की थी। लेकिन 4 राष्ट्रीय दलों को छोड़ कर किसी ने भी चंदे का विवरण देने में रुचि नहीं दिखाई। जिसके बाद आयोग ने अंतिम तिथि को एक माह बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दिया। बावजूद इसके भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने ब्यौरा नहीं सौंपा।   

कांग्रेस को मिला साढ़े 26 करोड़ रुपए चंदा

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29सी के तहत सभी राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से ऊपर के चंदे की जानकारी हर साल चुनाव आयोग को सौंपनी होती है। आयोग की वेबसाइट के मुताबिक कांग्रेस ने 26 करोड़ 65 लाख, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 2 करोड़ 87 लाख एवं भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने एक करोड़ 14 लाख रुपए चंदे का ब्यौरा सार्वजनिक किया है। वहीं सीपीआई(एम) ने 9 अक्तूबर को पौने तीन करोड़ रुपए चंदा मिलना स्वीकारा।  

गैरकानूनी है पैसा

असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य और आईआईएम अहमदाबाद के सेवानिवृत प्रोफेसर जगदीप चोकर का कहना है कि राजनीतिक दल चंदे का ब्यौरा देना ही नहीं चाहते। इसके लिए वे तमाम तरीके ढूंढते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की इस मंशा से शक होता है कि उनका यह पैसा गैरकानूनी है।

49 क्षेत्रीय दलों में से 14 ने दिया ब्यौरा

मान्यता प्राप्त 49 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में मात्र 14 दलों ने ब्यौरा सौंपा है। आम आदमी पार्टी, जनता दल सेक्यूलर, लोकजनशक्ति पार्टी, बीजू जनता दल ने अभी तक रिपोर्ट नहीं सौंपी है। बसपा, राष्ट्रीय लोकदल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, अन्नाद्रमुक ने भी 20 हजार या उससे ऊपर का चंदा मिलने से इंकार किया है। हाल ही में चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय से सिफारिश की थी कि चंदे की सीमा 20 हजार से घटा कर दो हजार रुपए की जाए।

चंदे की राशि में टीआरएस टॉप पर

वहीं क्षेत्रीय दलों में सबसे ज्यादा चंदा तेलंगाना राष्ट्र समिति को 19 करोड़ 41 लाख, जदयू 11 लाख 19 हजार रुपए, आंध्र प्रदेश की युवजन श्रमिक रिथु कांग्रेस पार्टी को 8 करोड़ 35 लाख और अकाली दल को दो करोड़ 28 लाख रुपए मिले। जबकि समाजवादी पार्टी को 66 लाख रुपए और बिहार की राजद को मात्र 50 हजार रुपए का चंदा मिला।

कहां है इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला पैसा?

आयोग को चुनावी चंदे का ब्यौरा देने वाली किसी भी पार्टी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली राशि का उल्लेख नहीं किया है। आयोग अगले कुछ दिनों में राजनीतिक दलों की ऑडिट रिपोर्ट का विश्लेषण करने के साथ फंडिंग सोर्स, शैल कंपनियों के इस्तेमाल, गुप्त दानदाताओं और विदेशी धन का बॉन्ड खरीदने के इस्तेमाल की भी जांच करेगा। इसके अलावा जल्द ही बॉन्ड्स के मूल्यांकन के साथ योजना की समीक्षा के लिए कानून मंत्रालय को भी पत्र लिखेगा। हालांकि ई-बॉन्ड का आखिरी पांचवा चरण 01 अक्तूबर से 10 अक्तूबर भी समाप्त हो चुका है। पहले तीन चरण में स्टेट बैंक ने 400 करोड़ के 900 बॉन्ड जारी किए थे।

आयोग को मिले मान्यता रद्द करने का अधिकार

एडीआर के प्रोफेसर चोकर का कहना है कि ई-बॉन्ड में दानदाता की बजाए केवल धन राशि का ब्यौरा देना होता है। उनका कहना है कि आयोग के पास केवल नोटिस भेज कर सिंबल रद्द करने का ही अधिकार है। उनका मानना है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म करने का अधिकार भी मिलना चाहिए।  

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदों यानी चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा और पारदर्शी बनाने के लिए सरकार ने इसे लागू किया था। जिसके तहत एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। वहीं राजनीतिक दलों को ये बॉन्ड बिक्री के बाद 15 दिनों के अंदर अपने खातों में जमा कराने होंगे। 15 दिन के बाद इनका मोल कागज के टुकड़े से ज्यादा नहीं रह जाएगा। साथ ही, केवाईसी पूरा करने वाला देश का कोई भी नागरिक खुद या किसी के साथ मिलकर ये बॉन्ड खरीद सकता है।