लोकसभा में ही पिछले 15 वर्षों में दागी सांसदों की तादाद 20 फीसदी बढ़ी है। निचले सदन में मौजूदा करीब आधे सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं। पिछले चार लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 2004 में 24 फीसदी सांसद दागी थे तो 2009 में इनकी संख्या छह फीसदी बढ़कर 30 फीसदी हो गई। वहीं, 2014 में इसमें इजाफा जारी रहा और 185 यानी 34 फीसदी दागी लोकसभा पहुंचे।
इस लिहाज से हर तीसरे सांसद पर कोई न कोई आपराधिक आरोप था। इनमें से 21 फीसदी पर तो गंभीर मामले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो दागी सांसदों की तादाद 10 फीसदी और बढ़ गई। अब 43 फीसदी सांसदों पर मामले चल रहे हैं। इनमें से 29 फीसदी यानी 159 पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं। कांग्रेस के इड्डुकी (केरल) के सांसद डीन कुरियाकोस पर सबसे ज्यादा 204 मुकदमें हैं।
विधानसभाओं का भी बुरा हाल
विधानसभाओं का हाल भी ऐसा ही है। सभी राज्यों में ऐसे विधायक मिल जाएंगे जिनपर संगीन मुकदमे दर्ज हैं। दल इन्हें सियासी मुकदमे कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। उत्तर प्रदेश में तो भाजपा कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा के बाद भी बचाती रही। अंतत: छिछालेदार के बाद उसे पार्टी से निकाला। आज भी वो विधायक है। इनके अलावा हरिशंकर तिवारी, रघुराज प्रताप सिंह, अतीक अहमद, अमरमणि त्रिपाठी, धनंजय सिंह, ब्रजेश सिंह, सुशील सिंह आदि माफिया राजनीति में हाथ आजमा चुके हैं।