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भारत में चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए भारत निर्वाचन आयोग लगातार प्रयत्न कर रहा है। लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा खर्च की सीमा निर्धारित करने के बाद अब नजर राज्य विधान परिषद चुनाव के खर्च की सीमा भी तय करने की ओर है। निर्वाचन आयोग ने इस बारे में कानून मंत्रालय को पत्र लिखा है और लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह ही विधान परिषद चुनाव में भी उम्मीदवारों के खर्च सीमा को तय करने की जरूरत पर जोर दिया है। निर्वाचन आयोग ने कानून मंत्रालय को बताया है कि राज्य विधान परिषद चुनाव में होने वाले खर्च की सीमा को निर्धारित करने को लेकर ज्यादातर क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीय पार्टियां सहमत हैं। कई दलों ने मांग भी की है कि विधान परिषद चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के खर्च करने की सीमा, लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह ही बांध दिया जाए।

खास बात ये भी है कि 29 अक्तूबर को निर्वाचन आयोग द्वारा लिखी चिट्ठी में कानून मंत्रालय को सूचित किया गया है कि ज्यादातर राजनैतिक दल विधान परिषद चुनाव को भी नियमों में बांधने को तैयार हैं। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में धारा 77 और धारा 78 में संशोधन करना होगा जिसे लेकर दलों को एतराज नहीं ।

राज्य विधान परिषद चुनाव में शिक्षक, स्नातक और स्थानीय प्राधिकरण के लिए खर्च सीमा तय करने को लेकर कानून बनाने की मांग के लिए लिखी चिट्ठी में बताया गया है कि 7 में से 5 राजनैतिक पार्टियों ने और 51 में से 8 क्षेत्रीय दलों ने सर्व दलीय बैठक में अपनी सहमति, खर्च निर्धारित करने के लिए दे दी है।

आप को बता दें कि 27 अगस्त को निर्वाचन आयोग ने इस विषय पर राजनैतिक पार्टियों के विचार जानने के लिए सर्व दलीय बैठक बुलाई थी। राज्य विधान परिषद इस समय देश के 7 राज्यों में अस्तित्व में है । वो राज्य- उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, कर्नाटक, और महाराष्ट्र हैं ।
 

इससे पहले आयोग ने राज्य विधान परिषद चुनाव में खर्च की सीमा को राज्य विधान सभा चुनाव के आधा रखने का सुझाव दे चुकी है । लेकिन अभी इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है।