लोकसभा और राज्य विधानसभा के साथ-साथ होने वाले चुनावों में राष्ट्रीय दल फायदे में रहते हैं जबकि छोटे क्षेत्रीय दल कमजोर पड़ जाते हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। यह मानना है चुनाव विशेषज्ञों का। वे समकालिक चुनावों से पैदा होने वाली चुनौती विषय पर आयोजित सेमिनार में विचार व्यक्त कर रहे थे। सेमिनार का आयोजन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने किया था।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाइ कुरैशी ने कहा, साथ होने वाले चुनाव में बड़े राजनीतिक नेताओं की लहर पैदा हो जाती है। इसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ता है। इससे राष्ट्रीय दल तो लाभान्वित हो जाते हैं लेकिन छोटे क्षेत्रीय दलों के भविष्य के लिए मुश्किल पैदा हो जाती है। विविधताओं वाले हमारे देश में, जहां पर संघीय ढांचा विद्यमान है। यहां पर छोटे दलों की मौजूदगी मतदाताओं को विकल्प चुनने में सहायक साबित होती है।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी के निदेशक संजय कुमार ने कहा, साथ-साथ होने वाले चुनावों में बड़ी पार्टियां फायदे में रहती हैं जबकि छोटे दलों के हित दब जाते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंचायत से लोकसभा तक के चुनाव साथ कराने की आवश्यकता जताई है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रशासनिक स्थिरता के लिए इस तरह के चुनाव को जरूरी बताया है।