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Bhopal
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) संस्था ने मध्यप्रदेश की 14 वीं विधानसभा का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। एडीआर संस्था के पदाधिकारी शुक्रवार को मीडिया से चर्चा कर रहे थे।
एडीआर संस्था की रोली शिवहरे ने बताया कि दो सालों में विधानसभा के कुल 10 सत्रों की कुल अवधि 149 दिन थी, जिसमें 105 दिन विधानसभा की बैठक होनी थीं। लेकिन इसमें सिर्फ 72 दिन बैठक चलीं। इन 72 दिनों में कुल 333.5 घंटे ही विधानसभा में चर्चा हुई यानि औसतन के हिसाब से प्रतिदिन 4.6 घंटे बैठक चली। सरकारी विभागों में दिन में कम से कम आठ घंटे काम करने पर ही भत्ता प्राप्त होता है, लेकिन विधायकों को महज 4.6 घंटे काम करने पर पूरे दिन का भत्ता दिया जा रहा है।
रोली शिवहरे ने आगे बताया कि आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विधानसभा सत्र में सिर्फ तीन विधायकों की उपस्थिति 100 प्रतिशत है। इसमें चचौर की बीजेपी विधायक ममता मीना, भोपाल उत्तर के कांग्रेस विधायक आरिफ अकील और बागली के बीजेपी विधायक चम्पालाल देवड़ा के नाम शामिल हैं।
आरटीआई जानकारी के अनुसार विधानसभा सत्र में प्रदेश के 66 प्रतिशत विधायकों की उपस्थिति 76 प्रतिशत, पांच विधायकों की उपस्थिति 51 से 75 प्रतिशत के बीच, 10 विधायकों की उपस्थित 26 से 50 प्रतिशत के बीच दर्ज की गई है। वहीं अमरवाड़ा के कांग्रेस विधायक कमलेश प्रताप सिंह की उपस्थिति सिर्फ 25 प्रतिशत दर्ज हुई है। यानि कमलेश प्रताप सिंह सिर्फ 14 दिन विधानसभा सत्र में उपस्थित रहें, वहीं बड़वानी के कांग्रेस विधायक रमेश पटेल 25 दिन उपस्थित रहे।
मध्यप्रदेश विधानसभा सदस्य वेतन, भत्ता तथा पेंशन अधिनियम 1972 के तहत मंत्री, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष को यात्रा तथा दैनिक भत्ता नहीं प्राप्त होता है। इसलिए उन्हें अटेंडेंस रजिस्टर में साइन करना कोई जरूरी नहीं है। यहां सवाल उठता है कि सभी को वेतन यानि आर्थिक लाभ तो दिया ही जाता है, फिर इन सदस्यों को इस अनिवार्यता से छूट को मिलती है।
संविधान का अनुच्छेद 190(4) के अनुसार यदि किसी विधायक एवं सांसद की सदन में उपस्थित एक वर्ष में 60 दिन न होगी, तो सदन उस स्थान को रिक्त घोषित कर देगा। लेकिन प्रदेश विधानसभा में हस्ताक्षर की अनिवार्यता नहीं होने के कारण एक नया ही नियम बना दिया गया।
रोली शिवहरे ने कहा कि मध्यप्रदेश के 14 वीं विधानसभा के बनने के बाद बीते 22 जुलाई 2014 को मध्यप्रदेश के राज्यपाल द्वारा लोरेन बी लोबो को विधानसभा के एंग्लो इंडियन सदस्य के रूप में चुना गया था। नियमानुसार इस पद पर रहने वाले व्यक्ति को विधायकों की भांति सभी सुविधाएं एवं भत्ते प्राप्त होंगी। लारेन बी लोगो के चयन के बाद से अप्रैल 2016 तक कुल 47 दिन विधानसभा की बैठक हुई, जिसमें वह केवल नौ दिन यानि 19 प्रतिशत ही उपस्थित रहीं।
एडीआर संस्था के अरुण गुर्टू ने ने कहा कि जिस प्रकार प्रत्येक सरकारी एवं प्रायवेट संस्थानों में छुट्टी के लिए आवेदन देना होता है, इसी प्रकार प्रदेश के विधायक एवं मंत्रियों के लिए भी यही प्रक्रिया लागू होनी चाहिए।
संसदीय लोकतंत्र में विधायकों को भी सदन में कम से कम 75 प्रतिशत हाजिरी का नियम बनाया जाए। जिस प्रकार संसद में सांसदों की उपस्थिति पर निगरानी करने के लिए एक समिति बनाई गई है, उसी प्रकार राज्य विधानसभा में भी इस प्रकार की समिति का गठन किया जाए। प्रदेश के मंत्री, विधायक, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष आदि को अटेंडेंस रजिस्टर में साइन करना बंधनकारी होना चाहिए।
अरुण गुर्टू का कहना है कि इस मामले के संदर्भ में उनकी संस्था ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है।