एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक देश की सत्ता संभाल रही बीजेपी कॉर्पोरेट और औद्योगिक घरानों की पहली पसंद बनी हुई है. ऐसे में मल्टी नेशनल कंपनियों और व्यापारिक घरानों से मिलने वाले चंदे में बीजेपी सबसे आगे है.
ADR द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय पॉलिटिकल पार्टियों को 2012-13 से 2015-16 के बीच कॉर्पोरेट/व्यापारिक घरानों से इन चार सालों के दौरान 956.77 करोड़ रुपये का चंदा मिला. यह इन पॉलिटिकल पार्टियों के कुल ज्ञात स्रोत का 89% था. जबकि इससे पहले 8 साल में यानी 2004-05 से लेकर 2011-12 के दौरान ये आंकड़ा ₹378.89 करोड़ ही था.
चुनाव वॉचडॉग संस्था एडीआर के मुताबिक बीजेपी को सबसे ज़्यादा ₹705.81 करोड़ दान मिला. जबकि कांग्रेस को 198.16 करोड़ दान में मिला. तीसरे नंबर पर शरद पवार की पार्टी एनसीपी को 50.73 करोड़ रुपये मिले. खास बात है कि बीजेपी के कुल स्रोत का 92% चंदा कॉर्पोरेट से आया जबकि कांग्रेस का 85% चंदा कॉर्पोरेट से आया है. इस पूरे चंदे के दौरान खास बात ये रही कि सबसे ज्यादा चंदा लोकसभा चुनाव 2014-15 के दौरान 573.18 करोड़ रुपये आया.
कॉर्पोरेट और व्यापारिक घरों से मिलने वाले चंदे को ADR ने 14 श्रेणियों में बांटकर विश्लेषण करते हुए बताया कि सबसे ज़्यादा चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट, चैरिटेबल ट्रस्ट और एजुकेशन ट्रस्ट आदि से 432.65 करोड़ रुपये आया. स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल जैसी कंपनियों ने 123 करोड़ रुपये दिए. मंदी में डूबे बिल्डर और रियल एस्टेट कंपनियों ने 121 करोड़ रुपये और माइनिंग से जुड़ी कंपनियों ने 87 करोड़ रुपये दिए.
ADR के संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने बताया कि 'अभी तक पॉलिटिकल पार्टियों को कॉर्पोरेट चंदे से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी लेकिन अब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कानून पास करवा दिया है. इसकी वजह से अब इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद करके कंपनियों और पॉलिटिकल पार्टियों को ये बताना जरूरी नहीं होगा कि किसने पैसे दिया और किसने लिया. ऐसा करना पारदर्शिता के खिलाफ है और वे जल्द ही इसके खिलाफ कोर्ट का रुख करने की बात कहते हैं.'