एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) की ताजा रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है. यूपी विधानसभा चुनाव के पहले चरण में राजनीतिक दलों ने 15 से प्रतिशत दागी नेताओं को टिकट दिया है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का भी पालन नहीं किया गया. पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को है.
15 से 75 फीसदी 'दागी' उम्मीदवारों को टिकट
एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है, यूपी विधानसभा चुनाव के पहले चरण में प्रत्याशियों के चयन में राजनीतिक दलों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. राजनीतिक दलों ने फिर से आपराधिक मामलों वाले लगभग 25 प्रतिशत उम्मीदवारों को टिकट देने की अपनी पुरानी प्रथा का पालन किया है. उन्होंने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित करने वाले 15 से 75 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2020 के अपने निर्देशों में विशेष रूप से राजनीतिक दलों को आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को चुनने व साफ छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने के कारण बताने का निर्देश दिया था. इस निर्देश के मुताबिक, ऐसे उम्मीदवारों के चयन का कारण उनकी योग्यता और उपलब्धियों के संदर्भ में होना चाहिए.
कानून तोड़ने वाले जीतने के बाद बनते हैं कानून बनाने वाले विधायक
हाल ही में 6 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए ऐसे निराधार और आधारहीन कारण जैसे व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे, सामाजिक कार्य, राजनीति से प्रेरित मामले आदि. यह दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए ठोस कारण नहीं है. यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि राजनीतिक दलों को चुनाव प्रणाली में सुधार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. हमारे लोकतंत्र में कानून तोड़ने वाले उम्मीदवार जीतने के बाद कानून बनाने वाले विधायक बनाने जाते हैं.
छह उम्मीदवारों पर हत्या का मामला
बता दें, सपा के 28 में से 17, रालोद के 29 में से 15, बीजेपी के 57 में से 12, कांग्रेस के 58 में से 11, बसपा के 56 में से 16 के उम्मीदवारों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं. इसमें से 6 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर हत्या से सम्बन्धित मामले घोषित किए हैं.