इस सप्ताह के एपिसोड में लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए धन संग्रह और व्यय के विश्लेषण पर एडीआर की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा की गई है | यहाँ पर कुछ मुख्य प्रमुखों को देखा गया है जिनके तहत राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने 75 दिनों के चुनावी अवधि के दौरान, लोकसभा चुनाव 2019 और चार विधानसभा (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) चुनावों में सबसे अधिक प्राप्त धन और खर्च का विश्लेषण किया है | पूरी रिपोर्ट के लिए इस लिंक पर क्लिक करें |.
नोट : यह एडीआर द्वारा आरम्भ की गई हिन्दी पॉडकास्ट श्रृंखला की पहली कड़ी है | आप हमें अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणी और सुझाव [email protected] पर भेज सकते हैं | | अंग्रेजी में इस कड़ी को सुनने की लिए, कृपया यहाँ क्लिक करें |
पॉडकास्ट हिंदी स्क्रिप्ट
परिचय 00:04
सभी को नमस्कार, एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला के पहले एपिसोड में आपका स्वागत है| इस श्रृंखला में, हम हर दो सप्ताह में एडीआर की रिपोर्ट के कुछ नवीनतम निष्कर्षों के बारे में बात करंगें | मेरा नाम हेमन्त सिंह है और मैं एडीआर में एक प्रोग्राम एसोसिएट हूँ | आज के अनुभाग में, हम लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए धन संग्रह और व्यय के विश्लेषण पर हमारी रिपोर्ट में विश्लेषित किये गए कुछ दिलचस्प आंकड़ों के बारे में बात करंगे |
पृष्ठभूमि 00: 39
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पिछले साल भारत ने लोकतान्त्रिक राजनीति के इतिहास में सबसे महंगे चुनावों में से एक देखा | कई मीडिया रिपोर्टों और सर्वेक्षणों में यह बताया गया है कि राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार पर कितना पैसा खर्च किया | इनमें से कई आंकड़े काफी हद तक एक पीपीई दृष्टिकोण पर आधारित थे, हमारे श्रोताओं के लिए इसका अर्थ है की धारणाओं, अनुभवों और अनुमानों को उन सख्याओं तक पहुंचना जो बड़े पैमाने पर अनुमानित आंकड़े, धारणाएं और अवलोकन हैं |आज हम एडीआर के जिस रिपोर्ट पर चर्चा करने जा रहे हैं, वह सीधे तथ्यों और आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है | इस मामले में, राजनीतिक दलों ने भारत के चुनाव आयोग को अपना व्यय विवरण प्रस्तुत किया है |
विषय की प्रासंगिकता 01:31
इससे पहले की मैं आज के विषय पर गहराई से विचार करूं, हमारे श्रोताओं के लिए यह समझना जरुरी है कि इस तरह के डेटा का विश्लेषण क्यों महत्वपूर्ण है | सबसे पहले, हम इस बात पर गौर करें कि प्रत्येक राजनीतिक दल (चाहे राष्ट्रीय हो या क्षेत्रीय दल) चुनाव अभियानों में कितना खर्च कर रहे हैं | इससे हमें उनके अभियानों के पैमाने का अंदाज लगता है तथा उनकी चुनाव अभियानों पर खर्च करने के बीच तुलना करने में सक्षम बनाता है | दूसरा, इस विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षो में चुनावी खर्च के रुझान, उनकी बदलती प्रकृति और व्यय के किन प्रमुख मुद्दों पर दलों का ध्यान केंद्रित रहा है |
लोकसभा और विधान सभा चुनावों में लड़ने वाले सभी राजनीतिक दलों (मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और गैरमान्यता प्राप्त दलों) को एक ही चुनाव अवधि के दौरान एकत्र किए गए कुल धन और कुल खर्च का लेखा जोखा बनाये रखना आवश्यक है, जिसके तहत विभिन्न प्रमुखों के अलावा धन खर्च किया गया हो |
राजनीतिक दलों को लोक सभा चुनावों के लिए 90 दिनों के अंतर्गत और राज्य विधान सभा चुनावों के लिए 75 दिनों के भीतर अपना चुनाव खर्च विवरण भारतीय चुनाव आयोग को प्रस्तुत करना होता है |
एडीआर की रिपोर्ट का परिचय 02:54
इस रिपोर्ट का मुख्य बिंदु जिस पर आज हम चर्चा करने जा रहे हैं, वह पिछले साल के लोक सभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का खर्च है | याद रहे इस चुनाव के साथ-साथ चार अन्य राज्यों - आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम विधान सभा चुनाव भी हुए थे | यह रिपोर्ट 75 दिनों के कुल चुनावी अवधि के दौरान 7 राष्ट्रीय और 25 क्षेत्रीय दलों द्वारा प्राप्त धन और व्यय का विश्लेषण करती है | यहाँ पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस रिपोर्ट का विश्लेषण करते समय चुनाव आयोग कि वेबसाइट पर 18 क्षेत्रीय दलों का खर्च विवरण उपलब्ध नहीं था |
मुख्य निष्कर्ष 03:38
तो आइए नजर डालते हैं रिपोर्ट के 10 प्रमुख निष्कर्षों पर :
- 32 राजनीतिक दलों ने कुल रु 6400 करोड़ की धनराशि एकत्रित की थी जिसमें से 87% यानि रु 5500 करोड़ की धनराशि सात राष्ट्रीय दलों ने एकत्र किया था | जबकि 25 क्षेत्रीय दलों ने कुल मिलाकर रु 860 करोड़ की राशि घोषित किया, जो कुल प्राप्त राशि का 13% था |
- दलों में से, बीजेपी ने सबसे अधिक रु 4057 करोड़ प्राप्त किए ,जो सभी दलों द्वारा एकत्र किए गए कुल धनराशि का 63% था | इसके बाद कांग्रेस ने रु 1167 करोड़ कि धनराशि प्राप्त किया | अन्य दलों में वाईएसआर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने सबसे अधिक धन एकत्रित किया था |
- दलों द्वारा किए गए खर्च : विश्लेषण से पता चलता है की सभी दलों ने कुल मिलाकर रु 2591 करोड़ खर्च किया था | जिसमें से राष्ट्रीय दलों ने सबसे अधिक रु 2000 करोड़ का व्यय किया जबकि क्षेत्रीय दलों ने केवल रु 586 करोड़ खर्च किए जो कुल खर्च का 23% था |
- सभी दलों के कुल खर्च में से, बीजेपी ने ही अकेले 44% यानिकि रु 1141 करोड़ का खर्च किया था , जबकि कांग्रेस ने बीजेपी के कुल खर्च का 50% से थोड़ा ज्यादा व्यय किया था जो रु 626 करोड़ है | क्षेत्रीय दलों में से बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और डीएमके ने रु 80 करोड़ से रु 190 करोड़ के बीच खर्च किया है |
- विभिन्न प्रमुखों के तहत दलों द्वारा खर्च - दलों ने सबसे ज्यादा खर्च प्रचार पर किया है | श्रोताओं मैं आपको बता दूँ की प्रचार के अंतर्गत मीडिया विज्ञापन, प्रचार सामग्री और सार्वजनिक बैठकें होतीं हैं | प्रचार पर दलों द्वारा खर्च की गई राशि रु 1500 करोड़ थी, जिसके बाद दलों ने यात्राओं, जिसमें स्टार प्रचारकों और पार्टी नेताओं पर रु 567 करोड़ और दलों द्वारा अपने उम्मीदवारों को दी गयी रु 528 करोड़ धनराशि का खर्च भी शामिल था |
- प्रचार के तहत, मीडिया विज्ञापनों पर दलों ने सबसे अधिक रु 1166 करोड़ का खर्च दर्शाया है |
- बीजेपी ने प्रचार पर ही सबसे अधिक धनराशि खर्च की है जो कुल खर्च का 44% यानिकि रु 651 करोड़ थी उसके बाद कांग्रेस ने प्रचार पर कुल खर्च का 32% व्यय किया था |
- एआईएफबी, एआईएमआईएम, एमएनएफ और एनपीएफ जैसे दलों ने चुनाव लड़ने के बावजूद प्रचार पर कुछ भी खर्च घोषित नहीं किया था | हाँ यह सही है की इन दलों ने चुनाव आयोग को प्रस्तुत खर्च विवरण में यह घोषणा की थी की इन्होने चुनाव लड़ा था, हालाँकि, चुनाव खर्च विवरण से पता चलता है की इन्होने चुनाव के दौरान प्रचार पर एक पैसा भी खर्च नहीं किया था |
- राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने यात्राओं पर कुल खर्च में से स्टार प्रचारकों पर 53% यानिकि रु 558.88 करोड़ और शेष 1.47% यानि रु 8.31 करोड़ अपने दलों के नेताओं की यात्रा पर खर्च किए थे |
- स्टार प्रचारकों की यात्रा पर बीजेपी ने सबसे अधिक 36% यानि रु 253.49 करोड़ इसके बाद कांग्रेस ने 22.74% यानि रु 127.10 करोड़ और तृणमूल कांग्रेस ने रु 50.726 करोड़ (9.08%) का खर्च किया था |
निष्कर्ष 07:24
इस प्रकार, हमारे पास जो सम्पूर्ण चित्र है, वह साबित करता है कि लोक सभा चुनाव 2019 में दलों द्वारा खर्च कि गई धनराशि पिछले सभी चुनावों की तुलना में सबसे अधिक थी | इसके आलावा, इन तथ्यों से संकेत मिलता है कि प्रचार पर खर्च, विशेष रूप से मीडिया विज्ञापन पर साल दर साल खर्चा बढ़ता ही जा रहा है |
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम केवल क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों के बीच ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों के सम्पूर्ण व्यय में भारी अंतर देखते हैं, लेकिन यह मुख्यधारा के राष्ट्रीय दलों में भी बराबरी और निष्पक्ष चुनाव लड़ने के स्तर में कमी का संकेत देती है जो अधिक चुनाव खर्च और जीत के बीच का सीधा संबंध होता है |
ये तथ्य हमारे चुनावी लोकत्रंत्र के नियमों और हमारे प्रतिनिधियों को चुनने के लिए हमारे पास मौजूद व्यवस्था के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा करते हैं | आज हमारे सामने यह सवाल है कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था हर चुनाव के साथ आने वाली उच्च लागतों को सहन कर सकती है, विशेषकर उनकी आवृत्ति को देखते हुए | मैं आप सभी से इस बारे में सोचने का आग्रह करता हूँ |
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मुझे आशा है कि आप सभी को यह उपयोगी और रोचक लगा होगा | यदि आप हमारे काम को पसंद करते हैं तो आप हमारी वेबसाइट www.adrindia.org पर पॉडकास्ट कि सदस्यता लें : और [email protected] पर अपनी प्रतिक्रिया हमें लिखना ना भूलें. हम एक और अद्भुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर हाजिर होंगे |
तब के लिए बने रहिये और सुनने के लिए धन्यवाद