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यह एपिसोड "राजनीति में बढ़ती आपराधिकता: वर्तमान कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों, महत्वपूर्ण विश्लेषण और अनुशंसित सुधारों" पर केंद्रित होगा। इस अनुभाग में, हम अपने चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में बढ़ती आपराधिकता की समस्या और इस प्रणाली को ठीक करने के लिए समाधान और उपायों पर चर्चा करेंगे।

नोट: आप हमें अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणी और सुझाव [email protected] पर भेज सकते हैं।

  • प्रस्तावना:- 00:10

(A)    सभी को नमस्कार, मेरा नाम सचिन कुमार है, और मैं एडीआर में एक सीनियर प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव हूँ। हमारी पॉडकास्ट श्रृंखला के ग्यारहवें एपिसोड में आपका स्वागत है। यह एपिसोड "राजनीति में बढ़ती आपराधिकता: वर्तमान कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों, महत्वपूर्ण विश्लेषण और अनुशंसित सुधारों" पर केंद्रित होगा। इस अनुभाग में, हम अपने चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में बढ़ती आपराधिकता की समस्या और इस प्रणाली को ठीक करने के लिए समाधान और उपायों पर चर्चा करेंगे।

(B)    पृष्टभूमि और अवलोकन:- 00:45

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के द्वारा, अपराधीकरण से मुक्त लोकतांत्रिक राजनीति सुनिश्चित करना नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव जनता के हित और कल्याण के लिए सर्वोपरि हैं। किन्तु यह मौलिक सिद्धांत, भारत के संसदीय लोकतंत्र के अपराधीकरण की वजह से बिगड़ गया है। "राजनीति के अपराधीकरण" के कारण बाहुबली और धनबली आपराधिक तत्व चुनाव में भाग ले सकते हैं और सभी मतदाता अपने को असहाय महसूस करते हैं।

(C)  सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश और इस तरह के निर्देश पर्याप्त क्यों नहीं हैं ? 01:16

  1. 13 फरवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित अपनी वेबसाइट पर 72 घंटों के भीतर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन करने के कारणों को सूचीबद्ध करें।
  2. 25 सितंबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों और आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के साथ अपने आपराधिक मामलों को शपथपत्र वापस लेने की अंतिम तारीख और मतदान की तारीख से दो दिन पहले तक तीन अलग - अलग तिथियों पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
  • 1 नवंबर, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 के चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के समय घोषित किए गए सांसदों और विधायकों से जुड़े 1581 मामलों से निपटने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का आदेश दिया था। ग्यारह राज्यों ने 12 विशेष अदालतें स्थापित की हैं। दिल्ली में दो और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में एक-एक हैं।
  1. 10 मार्च, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे आरोप निर्धारण की तिथि से एक वर्ष के भीतर सांसदों और विधायकों के खिलाफ ऐसे मुकदमों को समाप्त करने के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करें जिनमें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (1), 8 (2) और 8 (3) के तहत उल्लेखित अपराधों और आरोपों पर कार्यवाही हो।

 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में किए गए घोषणाओं का उद्देश्य निश्चित रूप से हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में सुधार करना है, लेकिन इन निर्देशों को केवल हमारे तथाकथित राजनेताओं और दलों को उनके कार्यों के प्रति जागरूक करने और मतदाताओं को एक सूचित विकल्प बनाने का मौका देने के लिए एक कदम के रूप में कहा जा सकता है। 13 फरवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक अवमानना याचिका में राजनीतिक दलों को उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के विवरण को व्यापक रूप से प्रकाशित करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्देशों में विशेष रूप से राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे कारण बताएं की साफ छवि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवारों के रूप में क्यों नहीं चुना जा सकता है। इन अनिवार्य दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसे चयन का कारण संबंधित उम्मीदवार की उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होना चाहिए। अफसोस की बात है कि उम्मीदवारों के चयन में राजनीतिक दलों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि उन्होंने फिर से आपराधिक मामलों वाले लगभग 32 प्रतिशत उम्मीदवारों को टिकट देने की अपनी पुरानी प्रथा का पालन किया है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चुनाव लड़ने वाले सभी प्रमुख दलों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित करने वाले 37 प्रतिशत से 70 प्रतिशत उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात उपचुनावों में भी उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। अधिकांश दलों ने दागी उम्मीदवारों को टिकट देने के निराधार और आधारहीन कारण बताएं है जैसे की: कोविड के दौरान अच्छा काम, व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे सामाजिक कार्य करना इत्यादि। इसके अलावा, 187 में से केवल चार राजनीतिक दल JDU, INC, CPI(ML) और RJD ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के कारणों को सूचीबद्ध किया है। कुछ राजनीतिक दलों के पास एक वेबसाइट भी नहीं है।

 (D)  समस्या का परिमाण: 05:04

धनबली और बाहुबली उम्मीदवार राजनीति पर हावी होने में सक्षम हैं, क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल ने चुनावी और राजनीतिक पार्टी सुधारों को गंभीरता से नहीं लिया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान लोकसभा सांसदों में से 43 प्रतिशत ने अपने ऊपर आपराधिक मामले और 29 प्रतिशत ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये हैं। 24 प्रतिशत राज्यसभा सांसदों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं, जिनमें से 12 प्रतिशत ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये हैं। 11 सांसदों ने अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामले घोषित किये है, 33 सांसदों ने हत्या का प्रयास से संबंधित मामले घोषित किये हैं। 8 सांसदों ने अपने ऊपर अपहरण और 13 सांसदों ने अपने ऊपर लूटपाट से संबंधित मामले घोषित किये हैं। हमारे विधायक भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। देश में 45 विधायक हैं जिन्होंने अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामले घोषित किये है जबकि 181 ने हत्या का प्रयास से संबंधित मामले घोषित किये है। 49 विधायक अपहरण के मामले में आरोपी हैं। यहां तक कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में विश्लेषित किए गए 3722 में से 1201 (32 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं। जबकि 2015 में 1038 (30 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये थे।

 

2009 से 2019 तक एडीआर द्वारा 'महिलाओं के ऊपर अत्याचार' पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, लोक सभा चुनाव में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में 231 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं। 2009 से 2019 तक लोक सभा चुनाव में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले सांसदों की संख्या में 850 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं। 18 सांसदों और 58 विधायकों ने महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित किये हैं। 3 सांसद और 6 विधायक हैं जिन्होंने बलात्कार से संबंधित मामले घोषित किये है। 2009 - 2019 की अवधि के दौरान 73 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर हत्या (आईपीसी-302) से संबंधित मामले घोषित किये हैं, जबकि 278 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर हत्या का प्रयास (आईपीसी-307) से संबंधित मामले घोषित किये हैं।

 

 (E)   राजनीति में बढ़ती आपराधिकता के पीछे कारण: 07:41

  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार राजनीति पर हावी होने में सक्षम हैं, क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल ने चुनावी और राजनीतिक पार्टी सुधारों को गंभीरता से नहीं लिया है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि प्रधान, महासचिव, उपप्रधान आदि जैसे पदाधिकारी राजनीतिक दलों के मुख्य निर्णयकर्ता होते हैं और चुनाव लड़ने के लिए उन्ही उम्मीदवारों को टिकट दिए जाते है जिनमें चुनाव जीतने की क्षमता हो।
  • राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन में कोई अच्छी तरह से परिभाषित प्रक्रिया नहीं है। टिकटों को जीतने योग्य कारक के आधार पर चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों को दिया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, यह देखा गया है कि बाहुबली और धनबली एक विजेता संयोजन बनाते हैं। इसलिए, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार आसानी से लोक सभा और राज्य विधानसभा चुनावों में अपना रास्ता बनाते हैं क्योंकि राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देने में संकोच नहीं करते हैं।
  • राजनीतिक दलों के कामकाज को विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं है। किसी भी संघर्ष या नियमों या कानूनों के उल्लंघन के मामले में राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को दंडित करने का कोई तरीका नहीं है।
  • राजनीतिक दलों ने आरटीआई कानून के दायरे में आने से इनकार कर दिया है। आरटीआई कानून के तहत पार्टियों को लाने से नागरिकों को न केवल आंतरिक पार्टी चुनाव, टिकट वितरण के मापदंड जैसे जानकारी, ऑडिट, समीक्षा, जांच और आकलन का अधिकार होगा, बल्कि लोगों को हमारे राजनीतिक दलों द्वारा मैदान में उतारे जाने वाले उम्मीदवारों के लिए पदाधिकारियों से निश्चित और सीधा जवाब लेने की भी अनुमति देगा।

 (F)   ऐसे दागी उम्मीदवारों के प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की तत्काल आवश्यकता क्यों है: 09:26

  • राजनेता निर्विवाद रूप से शक्तिशाली लोग हैं। हमारे समाज में राजनेताओं, नौकरशाहों और आपराधिक तत्वों के बीच सांठगांठ बढ़ती जा रही है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव भारत में सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर महसूस किया जा रहा है। हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में इस तरह के एक मजबूत आपराधिक-राजनीतिक-नौकरशाही सांठगांठ का केवल काल्पनिक आशाओं से सामना नहीं किया जा सकता है। हमारी न्यायिक प्रणाली के तहत दोषसिद्ध दर वर्षों से गिर रही है। इससे भी महत्वपूर्ण बात, परिक्षण के लिए लिया गया समय बहुत लंबा है।
  • वर्तमान कानून यानी जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 और न्यायालयों द्वारा जारी किए गए बार-बार के आदेश, आपराधिक तत्वों को सांसदों और विधायकों के रूप में उच्च वैकल्पिक कार्यालयों पर कब्जा करने से रोक नहीं पाए हैं। नतीजा यह है कि कानून तोड़ने वाले कानून बनाने वाले बन गए हैं। कहने की जरूरत नहीं, यह स्थिति भारत में लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए बहुत हानिकारक है।
  • हमारे राजनीतिक वर्ग के कामकाज को कठोर उपायों को अपनाकर ही नियंत्रित किया जा सकता है। केवल चेतावनियां देने से कुछ हासिल नहीं होगा। अपराधीकरण की समस्या से निपटा जा सकता है यदि ऐसे दागी उम्मीदवारों को अपराध के चरण और डिग्री दोनों के आधार पर चुनावी प्रक्रिया में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया जाए। यह उन उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करके प्राप्त किया जा सकता है जिनके खिलाफ न्यायालय द्वारा कम से कम 5 वर्ष के कारावास के अपराधों के आरोप लगे है और जो मामला चुनाव से कम से कम 6 महीने पहले दायर किया गया है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 228 के तहत, न्यायाधीश द्वारा आवेदन के बाद ही अदालत द्वारा आरोप तय किया जाता है। एक परीक्षण में धारा 173 (2) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पुलिस द्वारा दी गई राय पर विचार करने के बाद जब न्यायाधीश निश्चित करता है कि अभियुक्त ने अपराध किया है तब आरोप तय किए जाते हैं। यदि लोकतंत्र को चलाने के लिए कानून सर्वोपरि है, तो क्या ऐसे आपराधियों के हाथ में देश की सत्ता सौंपना उपयुक्त है जो पहले से ही कानून के विरोध में है ?
  • यह बात स्पष्ट है की सरकार और राजनीतिक दल किसी भी प्रकार के चुनावी या राजनीतिक सुधार के लिए अनिच्छुक हैं। वांछनीय है की केवल वे लोग जो ईमानदार, सक्षम और चरित्रवान पुरुष हैं उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए और प्रमुख नीति निर्माता होना चाहिए। अफसोस की बात है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में इस तरह की स्थिति का कोई आधार नहीं है। राजनीतिक प्रतिष्ठानों ने पूरी तरह से अवहेलना या जानबूझकर विभिन्न समितियों, नागरिकों और नागरिक समाजों द्वारा सुझाए गए सुधारों को दर किनार कर दिया है। यह सर्व-विदित है कि सन 1999 से कई समितियों द्वारा दी गई सिफारिशें ठन्डे बस्ते में पड़ी हैं।
  • विशेष अदालतों, फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना, इन सभी बुनियादी ढांचे को खड़ा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए ऐसी विशेष अदालतों के परिचालन खर्च के लिए भारत सरकार द्वारा खर्च की गई कुल राशि 'न्याय विभाग' की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना के लिए रु 22,750,000 थी। ऐसी अदालतों और संबंधित बुनियादी ढांचे की स्थापना के बारे में चिंता करना और पैसा खर्च करने के बजाए देश को चाहिए की 'बाहुबली और माफिया' के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए। वैसे भी वर्षों से ऐसे लंबित मामलों की स्थिति या परिणाम के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • अंत में, फास्ट ट्रैक और विशेष अदालतें विशेष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों से निपटने के लिए होती हैं जो दुर्दशा, प्रतिकूलताओं और दुखों की उपेक्षा करती हैं, जिनके तहत परिक्षण किए जा रहे हैं।   

 

 (G)  समय की तत्काल आवश्यकता: (निष्कर्ष) 13:46

  • राजनीति में आपराधिकता की बढ़ती समस्या पर अंकुश लगाने के लिए समाधानों की कोई कमी नहीं है। आवश्यकता है इसे करने की हिम्मत और इच्छाशक्ति की। कानून बनाने वाले ऐसे कानून नहीं बनाएंगे, जो उनकी बेपनाह और अनियंत्रित प्रविष्टि को प्रतिबंधित करें। इस बीच, राजनीतिक दल हमारी चुनावी प्रक्रिया में जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता के अलोक में किसी भी प्रयास को रोकने के लिए हमेशा एकजुट और दृढ़ रहेंगे। इस समय, यह न केवल अदालतों का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य बन जाता है कि वे अपनी भूमिका के प्रमुख कर्तव्य धारकों को याद दिलाएं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी उनका संवैधानिक विशेषाधिकार है कि इस तरह के कर्तव्यों को संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव के द्वारा कर्तव्यनिष्ठा से निर्वहन किया जाता है। अपराधीकरण की मौजूदा समस्या का समाधान करने का एकमात्र तरीका विभिन्न समितियों, नागरिक समाज और नागरिकों द्वारा प्रस्तावित प्रशंसनीय समाधानों पर तुरंत अमल करने की आवश्यकता हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को "न्याय और कानून के नियम" का परम संरक्षक होने के नाते, राजनीतिक दलों और राजनेताओं को उनकी इच्छाशक्ति, निंदनीय पूर्वनिर्धारण और आवश्यक कानूनों की अनुपस्थिति के लिए निर्देश देने की आवश्यकता है। समय की पुकार है की सांसदों और विधायकों को सदस्यता ग्रहण करने से अयोग्य घोषित किए जाने पर लिली थॉमस केस जैसा एक और फैसला होने दें। एडीआर सर्वोच्च न्यायालय से निम्नलिखित सुझावों पर तुरंत कार्यवाही करने की अपील करता है;

 

  • हत्या, बलात्कार, तस्करी, डकैती, अपहरण आदि जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी उम्मीदवारों को स्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए।
  • चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार जिनके खिलाफ कम से कम 5 वर्ष के कारावास के साथ गंभीर अपराधों के आरोप लगे है और जो मामला चुनाव से कम से कम 6 महीने पहले दायर किया गया है, उन्हें अयोग्य घोषित करना चाहिए।
  • दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों को दी जाने वाली कर में छूट को रद्द कर देना चाहिए।
  • तमाम राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए।
  • यदि कोई राजनीतिक दल जानबूझकर दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को खड़ा करता है तब उसको अपंजीकृत और अमान्य घोषित करना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों को प्रतिवर्ष अपने पदाधिकारियों के आपराधिक मामलों की जानकारी दर्ज करनी चाहिए और ऐसे रिकॉर्ड जनता के लिए उपलब्ध कराने चाहिए।
  • चुनावी शपथपत्रों (फॉर्म 26) में गलत जानकारी देने वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर देना चाहिए।
  • आपराधिक मामलों में आरोपी राजनेताओं के मामलों की सुनवाई सुनिश्चित कर समयबद्ध तरीके से निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए।
  • यदि नोटा को किसी भी उम्मीदवार की तुलना में अधिक वोट मिलते हैं, तो किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित नहीं किया जाना चाहिए, और दुबारा चुनाव होने चाहिए। दुबारा चुनाव होने पर यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी उम्मीदवारों को नोटा से कम वोट मिलते है तो उन्हें दुबारा चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

 

आज के एपिसोड के लिए बस इतना ही, मुझे आशा है कि आप सभी को यह उपयोगी और रोचक लगा होगा। यदि आप हमारे काम को पसंद करते हैं, तो आप हमारी वेबसाइट www.adrindia.org पर पॉडकास्ट कि सदस्यता लें और अपनी प्रतिक्रिया हमें [email protected] पर लिखना ना भूलें। हम एक और अदभुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर से हाज़िर होंगे। तब तक के लिए बने रहिये और सुनने के लिए धन्यवाद।

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