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यह एपिसोड एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला का चौबीसवां एपिसोड है, हम इस प्रकरण में वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय दलों दलों द्वारा पूरे भारत वर्ष से किए गए कुल आय और व्यय को देखते हैं, जैसा की चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध राष्ट्रीय दलों द्वारा अपने ऑडिट रिपोर्ट में घोषित किया गया है | कुल 8 राष्ट्रीय दलों में से (30 जून, 2021 की विस्तारित समय सीमा के अनुसार) 6 दलों ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट समय सीमा पर प्रस्तुत की, जबकि बीजेपी ने अपना ऑडिट रिपोर्ट 21 दिनों की देरी के बाद चुनाव आयोग को प्रस्तुत किया था | इस प्रकरण की रिकॉर्डिंग के समय तक भी नेशनल पीपुल्स पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं थी | हर साल कई राजनीतिक दल चूक करते हैं और अपने वार्षिक रिपोर्ट आयोग को निर्धारित तारीख से पहले प्रस्तुत करने में देरी करते हैं | इनमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और गैर-मान्यता प्राप्त दल शामिल हैं | यह स्पष्ट नहीं हैं कि स्मरण पत्र भेजने के अलावा, क्या चुनाव आयोग द्वारा ऐसे दलों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है या सीबीडीटी द्वारा इस तरह के दलों की कर छूट वापस ली जाती है |

प्रारम्भिक टिप्पणियां (00:09)

राजनीतिक दल विभिन्न स्त्रोतों से दान प्राप्त करते हैं, इसलिए जवाबदेही और पारदर्शिता उनके कामकाज का महत्वपूर्ण पहलू होना चाहिए | व्यापक और पारदर्शिता लेखा प्रणाली के लिए आवश्यक है कि पार्टियां सही वित्तीय स्थिति प्रदर्शित करें | इसके लिए, भारत चुनाव आयोग (ईसीआई) ने सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को दिए गए वित्तीय वर्ष के लिए अपनी ऑडिट रिपोर्ट का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया है |

 

एडीआर स्पीक्स के एक और एपिसोड में आपका स्वागत है | मेरा नाम भावना है और मैं एडीआर में एक प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव हूं |


परिचय (00:54)

यह एपिसोड एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला का चौबीसवां एपिसोड है | इस एपिसोड में हम वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय दलों द्वारा पूरे भारतवर्ष से घोषित की गई आय और व्यय का विश्लेषण को देखते हैं जो की चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध दलों द्वारा अपने ऑडिट रिपोर्ट में घोषित किया गया है | कुल 8 राष्ट्रीय दलों में से 6 दलों ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट 30 जून 2021 की विस्तारित समय सीमा के अनुसार समय पर प्रस्तुत की थी, जबकि बीजेपी ने 21 दिनों के देरी के बाद आयोग में जमा किया, इस प्रकरण के रिकॉर्डिंग के समय तक भी नेशनल पीपुल्स पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है |


पृष्ठभूमि (01:43)

वित्त विधेयक 2017 के अनुसार इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 13A में यह संशोधन किया गया था की सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को कर में छूट दी जाएगी "बशर्ते वो राजनीतिक दल जो अपने पिछले साल का आयकर विवरण (ऑडिट रिपोर्ट) एक निश्चित प्रारूप में नियमित तारीख तक आयकर विभाग को जमा करता है" | इस प्रकार जो दल निर्धारित तारीख पर या उससे पहले अपना ऑडिट रिपोर्ट आयकर विभाग को जमा नहीं करता है ऐसे दलों को कर में छूट नहीं देनी चाहिए और इनकी मान्यता भी रद्द कर देनी चाहिए |

हालाँकि, एडीआर के नवीनतम विश्लेषण में पाया गया है कि, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए, 1 राष्ट्रीय और 11 क्षेत्रीय दलों का ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आज की तारीख तक उपलब्ध नहीं है| इनमें प्रमुख राजनीतिक दल जैसे नेशनल पीपुल्स पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, जम्मू  एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस,  पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, पीपुल्स पार्टी ऑफ़ अरुणाचल, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़.दल शामिल हैं | इससे साफ जाहिर है की यह उपरोक्त नियम का उल्लंघन है |

 

 

 

 

मुख्य निष्कर्ष (02:53)

एडीआर ने राष्ट्रीय दलों की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट का विश्लेषण किया जिनके विवरण वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध थे | चलिए अब नजर डालते हैं एडीआर द्वारा विश्लेषण किए गए कुछ प्रमुख निष्कर्षों पर

  1. वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान, 7 राष्ट्रीय दलों ने रु206 करोड़ की कुल आय घोषित की थी, तथा इन दलों का कुल खर्च रु 3072.917 करोड़ था, जबकि तीन दलों (कांग्रेस, एनसीपी और बीएसपी) ने अपनी घोषित आय से अधिक खर्च किया था |

 

  1. उच्चतम आय घोषित करने वाले शीर्ष के पांच दलों में बीजेपी, कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं | बीजेपी ने राष्ट्रीय दलों में सबसे अधिक रु28 करोड़ की धनराशि एकत्रित की है जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान सात राष्ट्रीय दलों के कुल आय का 76.15% है तथा कांग्रेस ने दूसरा स्थान पर सबसे अधिक रु 682.21 करोड़ की आय घोषित की है जो सात राष्ट्रीय दलों के कुल आय का 14.34% है |

 

  1. वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2019-20 के बीच बीजेपी ने अपनी आय में सबसे अधिक 34% की वृद्धि, कांग्रेस ने अपनी आय में 25.69% की वृद्धि और एनसीपी ने अपनी आय में 68.77% की वृद्धि घोषित की है, जबकि इन्हीं दो वित्तीय वर्षों की तुलना में तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी और सीपीआई की आय में कमी आयी है |

 

  1. जिन राष्ट्रीय दलों को चंदा/योगदान से सबसे ज्यादा आमदनी हुई है उनमें बीजेपी को- रु775 करोड़, कांग्रेस को- रु 469.386 करोड़, तृणमूल कांग्रेस को- रु 108.548 करोड़, सीपीएम को- रु 93.017 करोड़, एनसीपी को- रु 83.3625 करोड़ और सीपीआई को- रु 3.024 करोड़ |

 

  1. बीजेपी ने सबसे अधिक व्यय चुनाव और सामान्य प्रचार पर किया था | कांग्रेस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस और बीएसपी ने चुनावी खर्च पर क्रमशः रु035 करोड़, रु 84.126 करोड़, रु 74.65 करोड़ और रु 51.756 करोड़ रूपये खर्च किए हैं |

 

  1. वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान चार राष्ट्रीय दलों (बीजेपी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी) ने सभी राष्ट्रीय दलों के कुल आय का 92% (रु 2993.826 करोड़) का दान चुनावी बांड्स के माध्यम से एकत्रित किया है | चुनावी बांड्स से बीजेपी ने रु 2555.0001 करोड़, कांग्रेस ने रु 317.861 करोड़, तृणमूल कांग्रेस ने रु 100.4646 करोड़ और एनसीपी ने रु 20.50 करोड़ का चंदा प्राप्त किया है |

 

  1. वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान, राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने अज्ञात स्त्रोतों (आईटी रिटर्न्स में निर्दिष्ट आय जिनके स्त्रोत अज्ञात हैं) से कुल रु41 करोड़ की आय घोषित की है जो दलों की कुल आय का 70.98% है जिसमें से दलों ने 88.643% की धनराशि चुनावी बांड्स द्वारा घोषित की है |

 

 

  1. चुनावी बांड द्वारा दान दाताओं को प्रदान की गई गुमनामी को देखते हुए, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय दलों का सबसे लोकप्रिय स्त्रोत बनके उभरा है | राष्ट्रीय दलों की वार्षिक आय 62% (रु 2993.826 करोड़) से अधिक दान राशि चुनावी बांड के माध्यम से आया है | जिन दानदाताओं ने चुनावी बांड के माध्यम से दान दिया है उनकी पहचान सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होती है | अभी तक आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध क्षेत्रीय दलों की ऑडिट रिपोर्ट के अध्ययन से पता चलता है की केवल 14 क्षेत्रीय दलों ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम रु 447.498 करोड़ का चंदा प्राप्त करने कि घोषणा की है |
  1. वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने अपनी योगदान रिपोर्ट में चुनावी बांड के माध्यम से रु 1 करोड़ का दान देने वाले दानदाता का नाम घोषित किया है | इससे सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दलों को चुनावी बांड से दान देने वाले दानदाता के बारे में पता है | जैसा कि इस मामले में देखा जा सकता है | यहाँ पर यह समझा जाता है कि कागजों पर, राजनीतिक दल कह सकते हैं कि उन्हें दानदाता कि पहचान के बारे में पता नहीं है लेकिन बंद दरवाजों के पीछे ज्यादातर दलों को दान देने वाले दानदाता के बारे में पता होता है | इसके अलावा सरकार के पास भी चुनावी बांड से दान देने वाले दानदाता कि पूर्ण जानकारी होगी क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक सरकार के साथ मिलकर काम करते हैं | इस तरह के दान के बारे में केवल आम जनता को ही अँधेरे में रखा जाता है |
  2. अज्ञात स्त्रोतों के तहत, कांग्रेस, एनसीपी और सीपीएम ने कूपन की बिक्री से 747% यानि रु 194.095 करोड़ की आय प्राप्त की थी | यहाँ पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि कूपन कि बिक्री भी राजनीतिक दलों द्वारा चंदा एकत्रित करने के तरीकों में से एक है इसलिए दलों द्वारा खुदही इसे छापा जाता है | कुल कितने कूपन छापे या मुद्रित (कुल राशि/ कूपन के मूल्य) किये जा सकते हैं इनकी कोई सीमा नहीं है | राजनीतिक दल ही केवल कूपन प्रणाली के बारे में जानकारी का एकमात्र स्त्रोत होते हैं और इसके अलावा कोई नहीं | कूपन योजना भारतीय चुनाव आयोग के अंतर्गत नहीं आता है और ना ही आयोग का इस पर कोई नियंत्रण है |

 

महत्वपूर्ण अंक और निष्कर्ष (08:57)

हर साल कई पंजीकृत राजनीतिक दल चुनाव आयोग को अपने वार्षिक रिपोर्ट निर्धारित तारीख से पहले जमा करने में देरी करते हैं | इनमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और गैर- मान्यता प्राप्त दल शामिल हैं | यह स्पष्ट नहीं है की, स्मरण पत्र भेजने के अलावा क्या चुनाव आयोग द्वारा ऐसे दलों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है या सीबीडीटी द्वारा ऐसे दलों की कर छूट वापस ली जाती है | इसलिए यह महत्वपूर्ण है की चुनाव आयोग सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों द्वारा जनता की जानकारी के लिए अपनी वेबसाइट पर देरी से या ना जमा करने वाले दलों की वार्षिक विवरण स्थिति और कार्रवाई की स्थिति रिपोर्ट उपलब्ध कराये | इसके अलावा जो दल बार-बार चूक करता है, उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया जाये तथा इस तरह के दलों को आयोग द्वारा पंजीकृत दलों की सूची से क्यों नहीं हटाया जाये | नागरिक समाज के साथ-साथ चुनाव आयोग और आरबीआई जैसे संवैधानिक अधिकारीयों द्वारा गंभीर चिंता व्यक्त की गई है कि चुनावी बांड के माध्यम से गुमनाम दान काले धन को वैध बनाने को प्रोत्साहित करेगा और फर्जी कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक वित्त पोषण को बढ़ावा देगा | चुनावी बांड्स ने चुनावी वित्त पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी को रोककर नागरिकों के मौलिक "जानने का अधिकार" का उल्लंघन किया है | इस तरह की अपारदर्शिता बड़े सार्वजनिक हित कि कीमत पर है और पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के लिए एक गंभीर झटका है इसलिए चुनावी बांड्स योजना 2018 को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाना चाहिए |

 

मुझे आशा है की आप सभी को यह एपिसोड उपयोगी और रोचक लगा होगा | यदि आप हमारे काम को पसंद करते हैं तो आप हमारी वेबसाइट WWW.ADRINDIA.ORG पर पॉडकास्ट की सदस्य्ता लें और अपनी प्रतिक्रिया हमें [email protected] पर लिखना ना भूलें | हम एक और अद्भुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर हाजिर होंगे | तब तक के लिए बने रहें और सुनने के लिए धन्यवाद

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