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यह एपिसोड "राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में क्यों लाना चाहिए" पर केंद्रित होगा। इस अनुभाग में, हम चर्चा करेंगे कि राजनीतिक दलों को सार्वजानिक प्राधिकरण, सम्बंधित कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के रूप में घोषित करना महत्वपूर्ण क्यों है और कैसे आरटीआई अधिनियम के तहत पार्टियों को लाने से हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में प्रचलित कई समस्याएं ठीक हो सकती हैं।

नोट: आप हमें अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणी और सुझाव [email protected] पर भेज सकते हैं।

पॉडकास्ट हिंदी स्क्रिप्ट

प्रस्तावना:- (00:08)

सभी को नमस्कार, मेरा नाम सचिन कुमार है, और मैं एडीआर में सीनियर प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव हूँ।  एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला के तीसरे एपिसोड में आपका स्वागत है। यह एपिसोड "राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में क्यों लाना चाहिए" पर केंद्रित होगा। इस अनुभाग में, हम चर्चा करेंगे कि राजनीतिक दलों को सार्वजानिक प्राधिकरण, सम्बंधित कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के रूप में घोषित करना महत्वपूर्ण क्यों है और कैसे आरटीआई अधिनियम के तहत पार्टियों को लाने से हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में प्रचलित कई समस्याएं ठीक हो सकती हैं

पृष्टभूमि और अवलोकन:- (00:41)

राजनीतिक दलों के पास ‘देश और उसके नागरिकों के साथ एक बाध्यकारी बंधन है।‘ लोकतंत्र के एक केंद्रीय संस्थान के रूप में, वे लोगों की इच्छा को मूर्त रूप देते हैं और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करते हैं कि लोकतंत्र उनकी आवश्यकताओं के लिए वास्तव में उत्तरदायी होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार कहा था, "हमारी जैसी जिम्मेदारी वाली सरकार में, जहाँ जनता के सभी एजेंट अपने आचरण के लिए जिम्मेदार होंगे, वहाँ कुछ छुपाया नहीं जा सकता। इस देश के लोगों को उनके सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले कार्य व प्रत्येक सार्वजनिक अधिनियम को जानने का अधिकार है।“

एडीआर इस क्षेत्र में 2010 से लगातार काम कर रहा है। हमने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई आवेदन दाखिल करके वित्त वर्ष 2004-5 से 2009-10 के बीच प्राप्त योगदान के विवरण से सम्बंधित जानकारी मांगी थी। अधिकांश पार्टियों ने या तो जवाब नहीं दिया या सार्वजनिक प्राधिकरण होने से इनकार किया। अंतत:, 2011 में, हमने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के पास शिकायत दर्ज की। 3 जून, 2013 को, सीआईसी ने आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (h) (ii) के तहत 6 राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, INC, BJP, CPI(M), CPI, NCP और BSP को "सार्वजनिक प्राधिकरण" घोषित किया। हैरानी की बात यह है, कि सीआईसी की पूर्ण पीठ (जो एक अर्ध-न्यायिक संवैधानिक निकाय है) उसके आदेश का अनुपालन किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल ने नहीं किया। पालन न करने के खिलाफ सीआईसी के पास एडीआर ने चार आवेदन दायर किए थे। अंतत: 16 मार्च 2015 को, सीआईसी ने कहा कि भले ही 3 जून, 2013 का आदेश अंतिम और कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन, आयोग के पास अवमानना और गैर-अनुपालन के मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त अधिकार नहीं हैं।  इसलिए 2015 में, एडीआर के पास राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के तहत लाने का अनुरोध करने वाले सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। हमारी याचिका के आधार पर, सरकार और राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किए गए। मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

विस्तृत तर्क: राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में क्यों आना चाहिए (02:54)

(i). पहला और सबसे महत्वपूर्ण, राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार द्वारा प्रमुखता से वित्तपोषित किया जाता है:

आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (h) (ii) किसी भी प्राधिकरण या निकाय या संस्था को सार्वजनिक प्राधिकारी घोषित करती है यदि वे सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित हैं।       राजनीतिक दलों को भी सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार वित्तपोषित किया जाता है। अब देखते हैं कैसे;

  • दिल्ली के प्रमुख क्षेत्रों में भूमि का आवंटन या तो, मुफ्त में, या राज्य की राजधानियों में भूमि के आवंटन सहित रियायती दरें।
  • रियायती किराये पर आवास/बंगले: एस्टेट निदेशालय ने अत्यधिक रियायती दरों पर दिल्ली में राजनीतिक दलों को बंगले आवंटित किए हैं; यह भी पार्टियों के अप्रत्यक्ष वित्तपोषण का एक रूप है।
  • करों में छूट:आयकर अधिनियम की धारा 13 A के तहत, राजनीतिक दलों को पार्टियों की आय की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग में जमा करने पर आयकर के भुगतान में 100 प्रतिशत कर छूट मिलती है।
  • दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर मुफ्त एयरटाइम: लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान, राजनीतिक दलों को दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर एयरटाइम स्लॉट आवंटित किए जाते हैं, वो भी बिलकुल मुफ्त।

(ii). राजनीतिक दल संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत प्राप्त अधिकार का भरपूर इस्तेमाल करते हैं: (04:06)

हमारी पूरी राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द घूमती है। संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दल अपने निर्वाचित सांसदों और विधायकों पर एक मजबूत नियंत्रण रखते हैं। अब हम देखते हैं कि कैसे;

  • यदि कोई भी सांसद या विधायक पार्टी लाइन से बाहर जाते हैं तो राजनीतिक दल एक निर्वाचित सदस्य को अयोग्य ठहरा सकते हैं। एक सांसद/विधायक के लिए अनिवार्य है कि वह राजनीतिक दलों के निर्देशों का पालन करे, ऐसा ना करने पर सदस्य अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  • संसद सदस्यों को लोक सभा/राज्य सभा में और विधायकों को विधानसभा में मतदान के दौरान व्हिप जारी करना और उसके पक्ष में मतदान निश्चित करना;
  • तय करें कि क्या कानून बने हैं;
  • तय करें कि सरकार सत्ता में बनी रहे या किस सरकार को सत्ता में आना चाहिए;
  • सार्वजनिक नीतियां तय करें जो लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं;

(iii). आरटीआई के तहत पार्टियों को लाना जनहित में है: (05:06)

सीआईसी ने राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकारी घोषित करते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों ने हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाई है और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य की प्रकृति उनके सार्वजनिक चरित्र की ओर भी इशारा करती है। अब देखते हैं कैसे;

  • आरटीआई अधिनियम की प्रस्तावना: आरटीआई अधिनियम की प्रस्तावना का उद्देश्य ‘एक सूचित नागरिकता बनाना और भ्रष्टाचार को रोकना और सरकार वह उसके प्रत्येक अंग को देश के नागरिकों के प्रति जवाबदेही के साधन रखना है। निःसंदेह राजनीतिक दल लोकतंत्र के अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थान हैं और लगातार सार्वजनिक कार्य करते हैं जो देश में शासन और सामाजिक-आर्थिक विकास के मापदंडों को परिभाषित करते हैं।'
  • राजनीतिक दल राजनीति का जीवन हैं: चुनाव राजनीतिक दलीय आधार पर लड़े जाते हैं। राजनीतिक दल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं, और लगातार सार्वजनिक कर्तव्य निभाने में लगे रहते हैं।
  • राजनीतिक दल अलोकतांत्रिक तरीके से कार्य नहीं कर सकते: जो राजनीतिक दल अपने आंतरिक कामकाज में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मान नहीं करता, उससे देश के शासन में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मान करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। यह मुमकिन नहीं है की आंतरिक रूप में जो राजनीतिक दल तानाशाही है, वह बाहरी रूप से अपने कामकाज में लोकतांत्रिक हो सकता है।

(iv). राजनीतिक दल के कानूनी अधिकार और दायित्व: (06:20)

राजनीतिक दलों के पास कानूनी अधिकार और दायित्व होते हैं और यह इंगित करता है कि ऐसे अधिकारों और दायित्वों को प्रभावी करने के लिए उन्हें पारदर्शी और जवाबदेह बनना चाहिए।

  • राजनीतिक दलों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 A के तहत संवैधानिक दर्जा दिया गया है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29A (5) के तहत, राजनीतिक दलों को भारत के संविधान के प्रति सच्चा विश्वास और निष्ठा रखने की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक दलों को आर.पी. अधिनियम की धारा 29C के तहत चुनाव आयोग के साथ अपने रु. 20,000/- और उससे ज्यादा के चुनाव खर्च और योगदान का विवरण दाखिल करना होगा।
  • राजनीतिक दलों को 100 प्रतिशत आयकर में छूट दी जाती है और उनकी वित्तीय रिपोर्टों में कोई कमी आने आने पर ऐसी छूट रद्द कर दी जाती है।
  • राजनीतिक दल उम्मीदवारों को टिकट देते हैं और लोग पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वोट देते हैं। ईसीआई राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968, के तहत पंजीकरण के बाद ही चिन्ह प्रदान करता है
  • चुनाव आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनावों की जिम्मेदारी, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार है। चुनाव आयोग को कुछ आकस्मिकताओं में राजनीतिक पार्टी की मान्यता निलंबित करने या वापस लेने का भी अधिकार है।

पार्टियों को आरटीआई अधिनियम के तहत आना क्यों जरुरी है: (07:48)

  • पारदर्शिता और जवाबदेही हमारी लोकतांत्रिक संवैधानिक प्रणाली का मूल है। इसलिए, समान अवधारणा को उन राजनीतिक दलों पर भी लागू होना चाहिए, जो संसदीय लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। यह राजनीतिक दल हैं जो सरकार बनाते हैं, संसद को चलाते हैं और देश का शासन चलाते हैं। इसलिए, आंतरिक पार्टी लोकतंत्र में सुधार, टिकट वितरण के लिए मापदंड, पदाधिकारियों के बारे में जानकारी, वित्तीय पारदर्शिता और उनके काम के भीतर जवाबदेही को लागू करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। वास्तव में, भारत के विधि आयोग ने 1999 में 'चुनावी कानूनों के सुधार' पर अपनी 170वीं रिपोर्ट में राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता के लिए विशेष रूप से वित्तीय पारदर्शिता और उनके कामकाज में जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की थी। यह सब केवल तभी संभव हो सकता है जब पार्टियों को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया जाए।
  • हमारे देश में, हमारे पास विशेष रूप से मंदिरों, स्कूलों, अस्पतालों, संस्थानों, क्लबों के लिए कानून हैं, लेकिन हमारे पास राजनीतिक दलों से निपटने के लिए एक भी कानून नहीं है। किसी भी गलती के मामले में उन्हें दंडित करने का कोई तरीका नहीं है, पदाधिकारियों कि शून्य जवाबदेही है और इसलिए उन्हें कोई डर नहीं है। याद रहे, आखिरकार यह राजनीतिक पार्टी है जो नियम बनाती है, अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से नीतियां तय करती है। वे हमारे पूरे संवैधानिक, लोकतांत्रिक, सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के संरक्षक हैं। किन्तु उनसे सवाल करने वाला कोई नहीं है, उनके कामकाज की कोई जवाबदेही नहीं है।
  • यह बात किसी से छुपी नहीं है कि राजनीति में धनबल और बाहुबल के बीच एक मजबूत सांठगांठ है जहां केवल धनी और बाहुबली व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलेगा। ऐसी पार्टियाँ हैं जो चुनाव भी नहीं लड़ती हैं और केवल पैसे कमाने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं। वास्तव में, 2016 में, चुनाव आयोग ने उन 255 राजनीतिक दलों को सूची से हटा दिया था, जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा था। राजनीतिक दलों के खाते के विवरण का कोई सीएजी ऑडिट नहीं होता है। एक और चिंता का विषय है जिसमे कॉरपोरेट इन राजनीतिक दलों को चंदा दे कर अपने पक्ष में नीति गठन व अन्य काम करवाते है। यदि भविष्य में भी राजनीतिक वर्ग पर किसी भी तरह की जाँच और जवाबदेही का अभाव रहा तो सुधार नामुमकिन है।

संक्षेप में: (10:17)

  • क्या यह एक भ्रम नहीं होगा की पारदर्शिता सभी राज्य अंगों के लिए अच्छी है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए इतनी अच्छी नहीं है, जो उन अंगो पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। जैसा की मैंने पहले कहा था, राजनीतिक सुधार राजनीतिक दलों को पूरी तरह से पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की मांग करते हैं, जिसमे दान का पूरा खुलासा, धन के स्रोत, आय और व्यय, टिकट वितरण के लिए मापदंड, आंतरिक पार्टी के चुनाव, पदाधिकारियों के बारे में जानकारी शामिल हो।
  • हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया में अन्य परेशान करने वाले रुझान है जैसे कि चुनावी बॉन्ड, असीमित और गुमनाम कॉरपोरेट दान, एफसीआरए में संशोधन, सरकारों द्वारा अपने पक्ष में कानून बनाने की शक्ति में अभूतपूर्व संशोधन, राजनीति में बढ़ती आपराधिकता। यह सब देखते हुए पार्टियों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
  • अब समय आ गया है की नागरिकों की खून पसीने की कमाई से जो आयकर वह सरकार को अदा करता है, सरकार/राजनीतिक दलों से उसका हिसाब माँगा जाये। इसका एक ही जवाब है- राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाओ, उन्हें हर एक सार्वजनिक कार्य के लिए जवाबदेह बनाओ ताकि वे अपने कार्यों के प्रति सचेत हो जाएं और उनके कार्यकलाप में सुधार हो, उनके बीच भय पैदा हो कि नागरिक सब जानते हैं।

 

आज के एपिसोड के लिए बस इतना ही, मुझे आशा है कि आप सभी को यह उपयोगी और रोचक लगा होगा। यदि आप हमारे काम को पसंद करते हैं, तो आप हमारी वेबसाइट www.adrindia.org पर पॉडकास्ट कि सदस्यता लें: और [email protected] पर अपनी प्रतिक्रिया हमें लिखना ना भूलें, हम एक और अदभुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर से हाज़िर होंगे।

तब तक के लिए बने रहिये और सुनने के लिए धन्यवाद।