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यह एपिसोड एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला का नौवा एपिसोड है, इसमें हम भूतपूर्व वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा पेश की गई चुनाव बांड योजना 2018 को देखेंगे जिसका उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाना है | मार्च 2018 से जनवरी 2020 के बीच, चुनावी बॉन्ड् की बिक्री के तेरह चरणों की अवधि में चुनावी बॉन्ड् योजना 2018 के तहत रु 6210.39 करोड़ के कुल 12452 बॉन्ड् बेचे गए | इनमें से रु 6190.14 करोड़ के 12312 बॉन्ड् का राजनीतिक दलों द्वारा वैधता अवधि के अंतराल में नकदीकरण किया गया | राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान देने वाले किसी भी व्यक्ति/संस्था का नाम घोषित करना आवश्यक नहीं है | इस प्रकार रु 6000 करोड़ से अधिक के बॉन्डों को खरीदने वाले एक भी दान दाता की पहचान सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं है | एडीआर द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों को सुनने के बाद, क्या श्रोताओं को लगता है की इस योजना से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आयी है इस बारे में श्रोता जरूर सोचें | नोट: आप हमें अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणी और सुझाव [email protected] पर भेज सकते हैं।

शुरुवाती टिप्पणियां : 00:15

मार्च 2018 से जनवरी 2020 के बीच, चुनावी बॉन्ड् की बिक्री के तेरह चरणों की अवधि में चुनावी बॉन्ड् योजना 2018 के तहत रु 6210.39 करोड़ के कुल 12452 बॉन्ड् बेचे गए | इनमें से रु 6190.14 करोड़ के 12312 बॉन्ड् का राजनीतिक दलों द्वारा वैधता अवधि के अंतराल में नकदीकरण किया गया | राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान देने वाले किसी भी व्यक्ति/संस्था का नाम घोषित करना आवश्यक नहीं है | इस प्रकार रु 6000 करोड़ से अधिक के बॉन्डों को खरीदने वाले एक भी दान दाता की पहचान सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं है |

एडीआर स्पीक्स के एक और एपिसोड में आपका स्वागत है | मेरा नाम हेमन्त सिंह है और मैं एडीआर में एक प्रोग्राम एसोसिएट हूँ |

परिचय : 01:21

यह एपिसोड एडीआर द्वारा शुरू की गई पॉडकास्ट श्रृंखला का नौवा एपिसोड है, इसमें हम भूतपूर्व वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा पेश की गई चुनाव बांड योजना 2018 को देखेंगे जिसका उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाना है | एडीआर द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों को सुनने के बाद, क्या श्रोताओं को लगता है की इस योजना से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आयी है इस बारे में श्रोता जरूर सोचें |

चुनावी बॉन्ड क्या है ?

यह प्रतिज्ञायुक्त पत्र की तरह जारी किया गया एक बांड है जो एक वाहक बैंकिंग दस्तावेज होगा | यह ना तो खरीदार का नाम रखता है और ना ही प्राप्त कर्ता का नाम, इसमें दोनों ही गुमनाम होते हैं | यह एक वाहक दस्तावेज होता है जिसमें कोई स्वामित्व की जानकारी दर्ज नहीं की जाती है और दस्तावेज के वाहक को ही मालिक माना जाता है | केवल योग्य राजनीतिक दल को ही चुनावी बॉन्ड का नकदीकरण करने का अधिकार होता है | वित्तीय वर्ष की प्रत्येक तिमाही में दस दिनों की निर्दिष्ट समय के लिए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से खरीद के लिए चुनावी बॉन्ड उपलब्ध होते हैं |

2 जनवरी 2018 को अधिसूचित इस योजना के तहत, कोई भी व्यक्ति अथवा घरेलू कंपनी को चुनावी बॉन्डों द्वारा अपने पसंद के राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति दी गयी है | ये चुनावी बांड एक हजार रूपये , दस हजार रूपये, एक लाख रूपये, दस लाख रूपये और एक करोड़ रूपये में जारी किये जाते हैं, और उन्हें 15 दिनों के अंतर्गत में नकदीकरण करना होता है | जिन बॉन्डों का 15 दिनों के वैधता अवधि के भीतर नकदीकरण नहीं होगा उन बॉन्डों की राशि को अधिकृत बैंक द्वारा प्रधानमंत्री राहत कोष (पीएमआरएफ) में जमा कर दिया जायेगा | अभी तक, पीएमआरएफ में कुल रु 20.25 करोड़ के 140 बॉन्ड जमा किये गए हैं | इस प्रकार, तेरह चरणों के दौरान खरीदे गए कुल बॉन्डों में से 99.67% को वैधता अवधि के भीतर राजनीतिक दलों द्वारा नकदीकरण किया गया था |

 

 

मुख्य निष्कर्ष : 04:02

एडीआर ने तेरह चरणों (मार्च 2018 से जनवरी 2020 तक) में खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्डों की राशि और राजनीतिक दलों द्वारा नकदीकरण किए गए बॉन्डों का शाखा-वॉर और मूल्यवर्ग-वॉर विश्लेषण किया है जिसका प्रारंभिक निष्कर्ष यह है -

  1. चुनावी बॉन्ड के कुल मूल्य का 32% केवल दो महीनों (मार्च 2019- आठवा चरण और अप्रेल 2019- नौवां चरण) में ख़रीदा गया | इस दौरान लोकसभा चुनाव हो रहे थे |
  2. खरीदे गए बॉन्डों में से एक करोड़ रूपए के मूल्य वाले कुल 81% यानि रु 5702 करोड़ के मूल्यवर्ग के थे | यह दर्शाता है कि बॉन्ड व्यक्तियों के बजाय कॉर्पोरेट्स द्वारा ख़रीदे जा रहे हैं |
  3. मार्च 2018 और जनवरी 2020 के बीच, दिल्ली (जहाँ राष्ट्रीय दलों का मुख्यालय स्थित है) से 8992 चुनावी बांड्स का नकदीकरण किया गया जिनकी कुल कीमत रु812 करोड़ थी जो पूरे नकदीकरण राशि का 80.40% था (जबकि बॉन्ड का अधिकतम मूल्य मुंबई में ख़रीदा गया) |
  4. वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 के बीच, राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड से कुल रु 70 करोड़ कि राशि प्राप्त हुई | इसमें से 63.42% यानि रु 1660.89 करोड़ कि राशि एक ही दल को मिला जो वर्तमान में सत्ताधारी राजनीतिक दल है |
  5. वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान चार राष्ट्रीय (बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस) दलों ने चुनावी बांड के माध्यम से रु68 करोड़ और सात क्षेत्रीय दलों (बीजेडी, टीआरएस, वायएसआर- कांग्रेस, शिवसेना, टीडीपी, जेडीएस, और एसडीएफ) ने चुनावी बांड से रु 578.49 करोड़ की आय एकत्रित की थी |

5 मार्च 2019 को एडीआर ने लोक सभा 2019 चुनाव के लिए, चुनावी बॉन्ड कि बिक्री और खरीद के खिलाफ उच्चतम न्यायलय में एक आवेदन दायर किया था | एडीआर ने दावा किया था कि आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को भारी मात्रा में कॉर्पोरेट फंडिंग मिलेगी और यह चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा | एडीआर के आवेदन के जवाब में, उच्चतम न्यायलय ने 12 अप्रैल 2019 के अपने अंतरिम आदेश में सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिए कि वे 30 मई 2019 को या उससे पहले चुनावी बॉन्डों के माध्यम से प्राप्त दान का विवरण सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को भेजें | एडीआर ने राजनीतिक दलों कि पात्रता कि जाँच की, जिन्होंने उच्चतम न्यायलय के आदेश के अनुपालन में चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत किए थे, विश्लेषण के निष्कर्षो से योजना अमल लाने पर कई प्रश्न उठते हैं -

  1. 69 गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों ने उच्चतम न्यायलय के अंतरिम आदेश का पालन करते हुए सील बंद लिफाफे के माध्यम से चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को प्रस्तुत किया था इनमें से केवल 43 दलों के वोट शेयर का विवरण उनकी पात्रता का आकलन करने के लिए उपलब्ध थे।
  2. चुनावी बॉन्ड योजना 2018 में वर्णित पात्रता मानदंड के अनुसार, विश्लेषण किए गए 43 दलों में से केवल एक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल को ही चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के योग्य पाया गया, अर्थात इन दलों ने पिछले आम चुनाव या विधान सभा चुनावों में एक प्रतिशत से भी कम मतदान प्राप्त किए थे |
  3. शेष 42 दलों का मतदान प्रतिशत जिन्होंने चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से प्राप्त दान का विवरण सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दिया था उनका मतदान अधिकतम 86 प्रतिशत और न्यूनतम 0.0003 प्रतिशत के बीच है |
  4. दस पंजीकृत गैर-मान्यता राजनीतिक दल जिन्होंने भारत चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में अपने आवश्यक विवरण प्रस्तुत किए थे, इन दलों का पंजीकरण मार्च और अप्रेल 2019 में हुआ था | इनमें से किसी भी दल ने लोक सभा चुनाव से पहले कोई भी चुनाव नहीं लड़ा था |
  5. चुनावी बॉन्ड योजना 2018 में उल्लिखित पात्रता मानदंडों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान प्राप्त करने के योग्य राजनीतिक दलों की कोई सूची सार्वजनिक क्षेत्र में या चुनाव आयोग के वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है | 10 अक्टूबर 2019 को एडीआर के आरटीआई आवेदन पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया की ऐसी किसी भी सूची को संकलित नहीं किया है |

 

महत्वपूर्ण उपलब्दियाँ : 09:14

 

जाहिर है की राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड को नगदीकरण करने से पहले, उनकी योग्यता पर किसी भी स्तर पर किसी भी प्राधिकारी द्वारा कोई जाँच नहीं की जाती की वह राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड योजना 2018 के तहत नगदीकरण करने के योग्य है या नहीं | इस योजना में उल्लेख किया गया है कि बॉन्ड को केवल एक योग्य राजनीतिक दल अपने नामित बैंक खाते में जमा करके नगदीकरण कर सकता है | अब सवाल यह उठता है कि योजना के तहत आवश्यक पात्रता को पूरा करने में विफल रहे राजनीतिक दलों ने भी चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में बॉन्ड विवरण प्रस्तुत किया है |

 

निष्कर्ष : 10:00

उपरोक्त विश्लेषण और आकड़ों से पता चलता है कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों के मौलिक " जानने का अधिकार" का उलंघन करते हुए चुनावी फंडिंग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी को रोकते हैं | इस तरह कि अपारदर्शिता बड़े सार्वजनिक हित की कीमत पर है जो पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के लिए एक गंभीर झटका है | इतना ही नहीं, मीडिया तथा अन्य वर्गों में चुनावी बॉन्ड योजना के कामकाज के खिलाफ कई आक्षेपों के बावजूद भी उच्चतम न्यायलय ने चुनावी बॉन्ड योजना के संचालन को रोकने से मना कर दिया और मामला अभी तक अदालत में लंबित है |

 

मुझे आशा है की आप सभी को यह एपिसोड उपयोगी और रोचक लगा होगा | यदि आप हमारे काम को पसंद करते हैं तो आप हमारी वेबसाइट www. adrindia.org पर पॉडकास्ट की सदस्यता लें और [email protected] पर अपनी प्रतिक्रिया हमें लिखना ना भूलें | हम एक और अद्भुत एपिसोड के साथ दो सप्ताह में फिर हाजिर होंगे | तब तक के लिए बने रहिये और सुनने के लिए धन्यवाद

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