पिछली लोकसभाओं से तुलना करें तो 2009 में लोकसभा में 30 फीसदी यानी 162 सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे, तो 2014 में ये 34 फीसदी यानी 185 हो गए. इसके बाद 2019 में इनकी तादाद 233 यानी 43 फीसदी हो गई.
राजनीति को अपराध मुक्त कराने के लाख दावों और वादों के उलट संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पिछली लोकसभा में जहां कुल सदस्यों के 43 फीसदी यानी 233 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे थे, तो अब नई यानी 18वीं लोकसभा में 46 फीसदी के साथ ये संख्या 251 हो गई है. यानी इसमें तीन फीसदी का इजाफा हो गया है, लेकिन 2009 से मुकाबला करें तो 15 साल में इसमें 55 फीसदी का इजाफा हुआ है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR और नेशनल इलेक्शन वॉच ने साझा तौर पर 543 में से 539 सांसदों के नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामों का अध्ययन कर रिपोर्ट कार्ड जारी किया है. इसमें बताया गया है कि रेप, मर्डर, किडनैप और महिलाओं के प्रति अपराध जैसे गंभीर आपराधिक आरोपों वाले सांसद 31 फीसदी यानी 170 हैं. पिछली लोकसभा में इनकी संख्या 159 यानी 29 फीसदी थी.
पिछली लोकसभाओं से तुलना करें तो 2009 में लोकसभा में 30 फीसदी यानी 162 सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे, तो 2014 में ये 34 फीसदी यानी 185 हो गए. इसके बाद 2019 में इनकी तादाद 233 यानी 43 फीसदी हो गई. एडीआर के मुताबिक इस लोकसभा में 170 गंभीर आरोपियों में 27 सांसद सजायाफ्ता हैं, वहीं, 4 पर हत्या के मामले हैं. 15 सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के इल्जाम हैं, जिनमें से 2 पर रेप का आरोप है. अपराधी पृष्ठभूमि वाले 43 सांसद हेट स्पीच के आरोपी हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ओडिशा में हुए विधानसभा चुनाव में 147 विधायकों में से 73 प्रतिशत करोड़पति हैं, जबकि 2019 के चुनावों में 95 (65 प्रतिशत) 'करोड़पति' विधायक चुने गए थे. इस साल चुने गए 107 करोड़पति विधायकों में से 52 उम्मीदवार भाजपा के, बीजद के 43, कांग्रेस के 9, माकपा का 1 और 2 निर्दलीय उम्मीदवार हैं.
147 विजयी उम्मीदवारों में से 85 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनमें 67 उम्मीदवार गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के 78 विजयी विधायकों में से 46 और बीजेडी के 51 विजयी विधायकों में से 12 ने अपने हलफनामों में घोषणा की है कि उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इसी तरह कांग्रेस के 14 विजयी विधानसभा उम्मीदवारों में से 5, माकपा के 1 और तीन निर्दलीय विजयी उम्मीदवारों पर भी गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.
ओडिशा विधानसभा चुनाव में जीतने वाले हर विधायक की औसत संपत्ति 7.37 करोड़ रुपये है, जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में यह 4.41 करोड़ रुपये थी. विजयी विधायकों में चंपुआ विधायक सनातन महाकुड़ (बीजेडी) 227.67 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ सबसे अमीर हैं. वहीं बालासोर विधानसभा से चुनाव जीतने वाली बीजेडी की सुबासिनी जेना 135.17 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ दूसरे नंबर पर हैं. सबसे कम संपत्ति वाले तीन उम्मीदवार हैं, इनमें भाजपा की संजली मुर्मू (35,076 रुपये) जो बंगरीपोसी विधानसभा सीट से जीती हैं, कांग्रेस उम्मीदवार मंगू खिल्ला (1.47 लाख रुपये) चित्रकोंडा विधानसभा क्षेत्र से और कांग्रेस के पाबित्रा सौंता (2.90 लाख रुपये) जो लक्ष्मीपुर विधानसभा क्षेत्र से जीते हैं.