MP Political News: मध्यप्रदेश की राजनीति में शुरू से ही बड़े उलटफेर होते रहे। बड़े ही नाटकीय ढंग से सरकार और मुख्यमंत्री की कुर्सी कई बार बदली। ऐसा ही एक किस्सा जब कांग्रेस के अंदर ही कई विधायकों के पाला बदलने के बाद द्वारका मिश्र प्रदेश के मुखिया बने।
- सन् 1963 में मुख्यमंत्री भगवन्त राव मण्डलोई को देना पड़ा इस्तीफा
- इसके बाद द्वारका प्रसाद मिश्र बने थे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री
- बड़े ही नाटकीय ढंग से सीएम बने थे मिश्र
मध्यप्रदेश की राजनीति में 2020 में जिस तरह बड़ा उलटफेर हुआ और सिंधिया खेमे के विधायकों की मदद से फिर भाजपा सरकार आई ये मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार नहीं था, बल्की मध्यप्रदेश के गठन के साथ ही प्रदेश की राजनीति बड़ी ही रोचक और दिलचस्प रही। फिर चाहे ये उलटफेर एक पार्टी के अंदर ही हुए हों या फिर बाहर। आज वो किस्सा बताएंगे जब देश और प्रदेश के इतिहास में पहली बार विधायकों की किडनैपिंग हुई और प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल गया।
कांग्रेस ने बदला मुख्यमंत्री, हो गया बड़ा खेल
किस्सा सन् 1963 का है जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री भगवन्त राव मण्डलोई थे। तब कांग्रेस ने कामराज प्लान के तहत केन्द्रीय मंत्री एवं मुख्यमंत्रियों से इस्तीफा ले लिया था। इसी प्लान के तहत मध्यप्रदेश के सीएम मण्डलोई को भी हटना पड़ा था। मण्डलोई द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद के कई दावेदार सामने आ गए। तब द्वारका प्रसाद मिश्र भी कांग्रेस के चुके थे। और सही समय भांप कर मिश्र ने कैलाशनाथ काटजू का नाम दोबारा मुख्यमंत्री पद हेतु प्रस्तावित कर दिया। तब तक द्वारका प्रसाद मिश्र कसडोल का उपचुनाव जीत कर विधानसभा के सदस्य बन चुके थे।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश (1956 से 2003, कांग्रेस युग) में लिखते हैं कि, इस समय इंदिरा गांधी ने द्वारका प्रसाद मिश्र को दिल्ली बुलवाया, उनसे बातचीत हुई और रणनीति बनी कि मध्यप्रदेश की राजनीति में परिवर्तन लाया जाए और डॉ. कैलाशनाथ काट्जू के अपमान का बदला लिया जाए।
विधायकों की पहली किडनैपिंग
मिश्र को पता था कि काटजू का विरोध होगा इसलिए उन्होंने यह भी घोषणा की, कि यदि डॉ. काटजू आम सहमति से चुने जाते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु चुनाव होते हैं, तो वे भी एक उम्मीदवार हैं। काटजू के सामने विदिशा के तखतमल जैन आ गए और विधायक दल में चुनाव हुए। अंततः द्वारका प्रसाद मिश्र की टक्कर तखतमल जैन से हुई, क्योंकि काटजू निर्विरोध चुने ही नहीं जा सकते थे।
मुख्यमंत्री का यह चुनाव बड़ा रोचक था। जोर आजमाईश व खींचतान इस कदर हावी थी कि विधायकों की किडनैपिंग तक हो गई। विधायकों के अपहरण की शायद इतिहास की यह पहली घटना थी, तब मिश्र की तरफ से 18-20 विधायकों को सागर के एक गुप्त स्थान पर रखा गया। जैसे ही चुनाव का वक्त आया उन्हें सड़क मार्ग से भोपाल लाया गया।
मिश्र को मिला विधायकों का साथ
उस विधायक दल के चुनाव में वासुदेव चंद्राकर के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ के सभी विधायकों को दस जीपों में भरकर भोपाल के लिए भेजा गया। उन दिनों मध्यप्रदेश की बड़ी लाबी मिश्र के साथ थी। विधायक विश्राम गृहखंड दो के सभाकक्ष में मतदान कराया गया। अखिल भारतीय कांग्रेस से बीजू पटनायक पर्यवेक्षक के रूप में आये थे। विधायक दल में चुनाव हुआ तो मिश्र को 83 और प्रतिद्वंद्वी तखतमल जैन को 64 वोट मिले।
कांग्रेस हाइकमान के प्रतिनिधि के रूप में लोकसभा अध्यक्ष रहीं मीरा कुमार के पिता बाबू जगजीवन राम भोपाल आए और राजभवन में विधायकों से चर्चा के बाद मिश्र को 29 सितम्बर 1963 को विधायक दल का नेता घोषित किया गया। अगले ही दिन उन्होंने शपथ ली और 29 जुलाई 1967 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।