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Source
जागरण
http://www.jagran.com/news/national-political-parties-are-under-the-rti-act-cic-10447177.html
Date
City
New Delhi
Political parties are under the RTI Act: CICआरटीआइ के दायरे में आईं राजनीतिक पार्टियां

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्रीय सूचना आयोग ने राजनीति में पारदर्शिता की नई परिभाषा गढ़ी है। आयोग ने फैसला दिया है कि देश के छह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा, बसपा, भाकपा, माकपा और राकांपा सूचना अधिकार कानून [आरटीआइ] के दायरे में आते हैं। उन्हें आरटीआइ कानून के तहत सार्वजनिक संस्थाएं माना जाएगा। आयोग ने इन दलों को न सिर्फ छह सप्ताह में सूचना अधिकारी नियुक्त करने का आदेश दिया है बल्कि पार्टी चंदे के बारे में मांगी गई सूचना भी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है।

माना जा रहा है कि सूचना आयोग का यह फैसला आसानी से राजनीतिक दलों के गले नहीं उतरेगा और वे इसे हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। यह निर्णय केंद्रीय सूचना आयोग [सीआइसी] की पूर्ण पीठ ने सुनाया है। मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्र, सूचना आयुक्त अन्नपूर्णा दीक्षित और सूचना आयुक्त एमएल शर्मा की पीठ ने सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद और राजनीतिक दलों की लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए उन्हें आरटीआइ कानून की धारा 2[एच] में सार्वजनिक संस्थाएं करार दिया है। याचिका आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल व अनिल बैरवाल की थीं। राजनीतिक दलों की सारी दलीलें खारिज करते हुए सीआइसी ने कहा है कि कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा को केंद्र सरकार से वित्तीय मदद मिलती है इसलिए ये राजनीतिक दल आरटीआइ कानून की धारा 2[एच] के तहत सार्वजनिक संस्थाएं मानी जाएंगी।

आयोग ने इन राजनीतिक दलों के अध्यक्षों और महासचिवों को निर्देश दिया है कि वे छह सप्ताह में अपने मुख्यालयों में केंद्रीय जन सूचना अधिकारी [सीपीआइओ] नियुक्त करें। ये सीपीआइओ चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं की आरटीआइ अर्जियों का जवाब देंगे। इसके अलावा आयोग ने इन दलों को आरटीआइ कानून की धारा 4[1][बी] के तहत अपने बारे में ब्योरा आम करने का भी निर्देश दिया है।

आयोग ने राजनीतिक दलों की यह दलील खारिज कर दी कि अगर उन्हें आरटीआइ के दायरे में लाया गया तो विपक्षी दल उन पर आरटीआइ अर्जी की भरमार कर देंगे। आयोग ने कहा, दुरुपयोग की आशंका पर किसी कानून की वैधता नहीं तय होती। अगर राजनीतिक दलों को सूचना कानून के दायरे में लाया गया तो उनके कामकाज में पारदर्शिता के युग की शुरुआत होगी। इससे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत होंगी। आयोग ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और विभिन्न आयोगों की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा कि भारत के लोगों को राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च का स्रोत पता होना चाहिए। राजनीतिक दल महत्वपूर्ण राजनीतिक संस्थाएं हैं। लोक जीवन में पारदर्शिता लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

राजनीतिक दल इसलिए हैं सार्वजनिक संस्था

1-चुनाव आयोग रजिस्ट्रेशन के जरिये राजनीतिक दलों का गठन करता है

2-केंद्र सरकार से [रियायती दर पर जमीन, बंगला आवंटित होना, आयकर में छूट, चुनाव के दौरान आकाशवाणी और दूरदर्शन पर फ्री एयर टाइम] प्रत्यक्ष और परोक्ष वित्तीय मदद मिलती है

3-राजनीतिक दल जनता का काम करते हैं

''हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की भूमिका और उनका कामकाज व चरित्र भी उन्हें आरटीआइ कानून के दायरे में लाते हैं। संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी उनका चरित्र सार्वजनिक संस्थाओं का है।'' -केंद्रीय सूचना आयोग

आरटीआइ का जवाब देना संभव नहीं: भाजपा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने के केंद्रीय सूचना आयोग के ऐतिहासिक फैसले पर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने संयमित प्रतिक्रिया दी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि चुनाव आयोग और सूचना आयोग को आपस में तय करना है कि राजनीतिक पार्टियां किसके प्रति जवाबदेह होंगी।

नकवी ने कहा, हर राजनीतिक दल अपनी सारी जानकारी पहले से चुनाव आयोग को देता रहा है और कोई भी व्यक्ति आरटीआइ के तहत उससे यह जानकारी ले सकता है। सूचना आयोग चाहे तो यह सारी जानकारी उसे भी दी जा सकती है। लेकिन, आम लोगों की आरटीआइ का जवाब देने की व्यवस्था करना राजनीतिक दलों के लिए संभव नहीं है।