Skip to main content
Date
City
New Delhi

इसी महीने से शुरू होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में ही जिस तरह एक सौ तीस दागी उम्मीदवारों के मैदान में होने की खबर आई है, वह लंबे समय से राजनीति को साफ-सुथरा रखने की कवायदों को मुंह चिढ़ाने जैसा है। खुद चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध उम्मीदवारों के हलफनामों के आधार पर देखा जाए तो बारह अक्तूबर को उनचास सीटों पर होने वाले पहले चरण के चुनाव में एक सौ चौहत्तर यानी तीस फीसद उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनमें से एक सौ तीस उम्मीदवारों पर हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार,सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, अपहरण जैसे संगीन और गैरजमानती अपराधों के सिलसिले में मुकदमे चल रहे हैं।

चुनाव सुधार के मुद्दे पर सक्रिय गैरसरकारी संगठन एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक दागियों को प्रत्याशी बनाने में बिहार की लगभग सभी पार्टियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इनमें भाजपा सबसे आगे है, जो बिहार को बदलने की बड़ी-बड़ी बातें कर रही है। खुद भाजपा के एक सांसद ने पार्टी पर मोटी रकम लेकर टिकट बांटने के आरोप लगाए। पार्टी के एक निवर्तमान विधायक ने भी ऐसा बयान दिया। दागियों को टिकट देने में जद (एकी) और राजद भी कम नहीं हैं।

दिलचस्प यह भी है कि निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिए पुलिस की ओर से प्रस्ताव मिलने पर बड़ी तादाद में दागियों को जिलाबदर करने का अभियान जारी है, दूसरी ओर गंभीर अपराधों में लिप्त होने के बावजूद ऐसे लोगों को राजनीतिक दल अपना प्रत्याशी बनाने में कोई हिचक महसूस नहीं कर रहे हैं। राजनीति में शुचिता की मांग को ताक पर रखते हुए दागियों को बेहिचक प्रत्याशी बनाने के अलावा टिकट बांटने में अपने सगे-संबंधियों पर भी खूब मेहरबानी लुटाई गई है। 

राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जताने वालों में जागरूक नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा खुद राजनीतिक दल और उनके बड़े नेता भी शामिल रहे हैं। लेकिन इस मसले पर पार्टियों की कथनी और करनी में अंतर बना रहा है। विडंबना यह है कि चुनाव आयोग से लेकर विधि आयोग तक की तमाम सिफारिशों के बावजूद आम दिनों में आपराधिक तत्त्वों को संरक्षण देने या उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से आगे विभिन्न राजनीतिक दल चुनावों में उन्हें उम्मीदवार बनाने से भी नहीं हिचकते।

राजनीति का अपराधीकरण रोकने के मकसद से निर्वाचन आयोग काफी पहले सुझाव दे चुका है कि ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए,जिनके खिलाफ संगीन मामलों में अदालत आरोप तय कर चुकी हो। करीब साल भर पहले विधि आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विधायिका में दागियों का प्रवेश रोकने के लिए आरोप तय होते ही अयोग्यता का प्रावधान होना चाहिए। लेकिन विभिन्न पार्टियां यह दलील देती रही हैं कि आंदोलन के दौरान या बदले की भावना से भी राजनीतिकों पर मुकदमे थोप दिए जाते हैं। सवाल है कि जिन बहुचर्चित बाहुबली और आपराधिक छवि वाले लोगों को जानते-बूझते हुए पार्टियां टिकट देती हैं, वे किस तरह के आंदोलन से जुड़े रहे होते हैं!