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Patna
अधिक पैसा सभी इच्छाएं भले पूरी करे, इच्छाओं की लिस्ट छोटी जरूर कर देता है। चुनावी राजनीति में पैसा, पावर ले आता है। बिहार में राजनीतिक मौसम की शुरुआत हो चुकी है। तो बात चुनावी बढ़त की करते हैं। यहां भी बढ़त का पैटर्न बदलता रहता है। कभी जाति का एक्सीलेरेटर बढ़त दिला देता है तो कभी बाहुबल। धनबल का टॉनिक भी काम करता है। लेकिन बात धनबल की हो तो कितना धन पर्याप्त या उससे अधिक माना जाएगा, इसमें कंफ्यूजन है।
फिलहाल बिहार में राजनीतिक पार्टियां धनबल के प्रयोग पर जितने विरोधी बयान दें, आंकड़े बताते हैं सब धनबलियों को हाथों-हाथ लिए रहते हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव 2005 और 2010 के आंकड़ों को ही देख लें तो करोड़पति विधायकों की संख्या 6 गुनी बढ़ गई है। 2005 में विधानसभा के सिर्फ तीन फीसदी विधायक ऐसे थे जो करोड़पति थे। यानी कुल आठ विधायक ऐसे चुने गए जिनके पास करोड़पति होने का तमगा पहले से था।
हालांकि, चुनाव लड़ने वाले करोड़पतियों में ये आठ ही विधायक नहीं थे। इस लिस्ट में और कई नाम हैं। लेकिन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2005 के चुनाव लड़ने वाले टॉप 20 करोड़पति उम्मीदवारों में सिर्फ तीन ही सरकारी गाड़ी के हकदार बन सके। शेष बचे पांच करोड़पति जरूर थे लेकिन टॉप 20 की लिस्ट से बाहर के। 2005 के करोड़पति विधायकों में सबसे अधिक 5 विधायक जदयू से थे। भाजपा का एक करोड़पति उम्मीदवार चुनाव जीत सका, जबकि राजद के दो करोड़पति उम्मीदवार विधायक बने थे।
2005 से बात आगे चली तो 2010 में राजनीति में करोड़पति उम्मीदवारों के विधायक बनने की लिस्ट छह गुना आगे बढ़ गई। 2005 में आठ करोड़पति विधायक थे और 2010 के इलेक्शन रिजल्ट के बाद बिहार विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या 48 हो गई, जो कुल विधायकों की संख्या का 20 प्रतिशत हिस्सा है। हालांकि टॉप 20 करोड़पति उम्मीदवारों के हाथ अधिक सफलता नहीं आई, इनमें से सिर्फ चार ही विधायक बन सके। 2010 में जदयू के 27 यानी कुल जीते विधायकों के 24 प्रतिशत विधायक करोड़पति थे। वहीं भाजपा में 13 प्रतिशत यानी कुल 12 विधायक, राजद में 23 प्रतिशत यानी 5 विधायक और कांग्रेस के 50 प्रतिशत यानी 2 विधायक करोड़पति थे। बात 2015 चुनाव की करें तो करोड़पति विधायकों की यह संख्या कितनी बढ़ेगी, यह तय जनता करेगी।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक विधायकों की औसत संपत्ति 2005 के चुनाव के मुकाबले 2010 में तीन गुना बढ़ गई। 2005 में विधायकों की औसत संपत्ति लगभग 27 लाख रुपए थी। इसमें कांग्रेस के विधायकों की 21 लाख, भाजपा के विधायकों की 22 लाख, राजद के विधायकों की 27 लाख, जदयू के विधायकों की 34 लाख और लोजपा के विधायकों की 40 लाख रुपए औसत संपत्ति बताई गई थी। 2010 में चुने विधायकों की औसत संपत्ति बढ़कर 81 लाख रुपए हो गई। इसमें राजद के विधायकों की 1 करोड़ रुपए, कांग्रेस के विधायकों की 93 लाख रुपए, जदयू के विधायकों की 84 लाख रुपए और भाजपा के विधायकों की 64 लाख रुपए की औसत संपत्ति बताई गई है। 2015 में यह औसत कितना बढ़ेगा, सवाल मौजूं है, जवाब का इंतजार है।