Source: 
Amar Ujala
https://www.amarujala.com/india-news/cic-verdict-can-t-be-used-to-seek-sc-order-for-bringing-political-parties-under-rti-centre-2023-07-25?pageId=2
Author: 
Date: 
25.07.2023
City: 
New Delhi

Supreme Court: केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए सीआईसी के फैसले का इस्तेमाल उच्चतम न्यायालय से आदेश लेने के लिए नहीं किया जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को यदि यह डर लगे कि उन्हें सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लाने से उनके आंतरिक निर्णय की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है तो यह इन दलों के लिए एक उचित चिंता हो सकती है। आंतरिक निर्णय की इस प्रक्रिया में किसी विशेष उम्मीदवार के चयन का कारण बताना भी शामिल हो सकता है। 

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी मंगलवार को उस याचिका की सुनवाई के दौरान की जिसमें राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित कर सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाने की मांग की गई है। इस मामले में भाजपा और कांग्रेस समेत कई दलों को प्रतिवादी बनाया गया है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीआईसी के किसी आदेश का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए परमादेश मांगने के लिए नहीं किया जा सकता है।

इससे पहले, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से पेश वकील पीवी दिनेश ने कहा, जहां तक राजनीतिक दलों की वित्तीय पारदर्शिता का सवाल है, हम इसका समर्थन करते हैं। लेकिन हम राजनीतिक दलों को गोपनीय जानकारी जैसे, किस उम्मीदवार को किन कारणों से चुना गया अथवा राजनीतिक दल के भीतर क्या चर्चा हुई, आदि का खुलासा करने के खिलाफ हैं।

इस तर्क पर ही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण और वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन को संबोधित करते हुए कहा, इस बात में दम है। वे कहते हैं, हमसे यह खुलासा करने के लिए न कहें कि हमने अपने उम्मीदवारों को कैसे चुना। मुझे नहीं लगता कि आप ऐसा कर सकते हैं।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, मूल रूप से याचिकाकर्ता जानना चाहते हैं कि पार्टियां कैसे काम करती हैं। पीठ ने यह देखते हुए कि इस मामले में सरकार की तरफ से पक्ष रखने वाले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी उपलब्ध नहीं हैं, सुनवाई को एक अगस्त तक के लिए टाल दिया।

दलों को सरकार से कर छूट, भूमि जैसे लाभ मिलने का हवाला
प्रशांत भूषण ने कहा कि सीआईसी ने 2013 में एक आदेश पारित किया था कि राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कर छूट और भूमि जैसे लाभ प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिए। भूषण ने यह भी तर्क दिया कि राजनीतिक दलों को सरकार से बंगलों सहित काफी लाभ मिलते हैं। शासन में उनकी भूमिका है क्योंकि वे व्हिप के माध्यम से अपने विधायकों की राय को नियंत्रित करते हैं। इसलिए इन्हें सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित कर सूचना के अधिकार के दायरे में लाना चाहिए।

पूर्व में पारित आदेशों का दिया हवाला...
शंकरनारायणन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पूर्व में कई आदेश पारित किए हैं, जिनमें राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा, प्रकाशन आदि करने का निर्देश दिया गया है।

सीआईसी ने 2013 में घोषित किया था सार्वजनिक प्राधिकरण
एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) सहित अन्य द्वारा दायर याचिकाओं में कहा गया है कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 2013 और 2015 में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया था। केंद्र ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि पार्टियों को आरटीआई अधिनियम के तहत अपने आंतरिक कामकाज और वित्तीय जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे सुचारु आंतरिक कामकाज में बाधा आएगी।

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