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Source
जनसत्ता
Author
News Desk
Date

पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने जगदीप एस छोकर के निधन पर कहा, "प्रोफेसर जगदीप छोकर का निधन दुखद है। उन्होंने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स का नेतृत्व किया, जिसने चुनावी लोकतंत्र के उच्च मानकों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके और एडीआर जैसे लोग अधिकारियों से सवाल पूछने के लिए बेहद ज़रूरी हैं, जो किसी भी लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है।"

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक और चुनाव सुधारों के प्रबल समर्थक जगदीप एस छोकर का शुक्रवार तड़के दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि उन्होंने अपने शरीर एक अस्पताल को दान कर दिया था।

आईआईएम-अहमदाबाद के रिटायर्ड प्रोफेसर जगदीप छोकर ने साल 1999 में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एडीआर की स्थापना की थी और राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाने के इसके प्रयासों का नेतृत्व किया था।

पिछले लगभग तीन दशकों में एडीआर के प्रयासों से चुनावों पर प्रभाव डालने वाले सुप्रीम कोर्ट के कई उल्लेखनीय फैसले सामने आए हैं। इनमें साल 2002 का वह निर्णय भी शामिल है, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के उम्मीदवारों के लिए अपने लंबित आपराधिक मामलों, वित्तीय स्थिति और शैक्षिक पृष्ठभूमि की घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया था।

फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले में सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया, जिसमें एडीआर भी एक याचिकाकर्ता था। अप्रैल 2024 में एडीआर की एक याचिका पर एक और फैसले के तहत, उपविजेता के अनुरोध पर चुनाव में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की जांच और सत्यापन के लिए एक नई प्रणाली शुरू की गई।

मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने बताया – चुनाव सुधारों का एक योद्धा

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने जगदीप छोकर के निधन पर कहा कि यह जानकर बेहद दुख हुआ कि एडीआर के संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर का निधन हो गया। वे स्वच्छ चुनाव और चुनाव सुधारों के लिए एक योद्धा थे। उन्होंने चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपना शरीर दान कर दिया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने जगदीप छोकर के निधन को लोकतंत्र के लिए एक क्षति बताया। उन्होंने X पर पोस्ट कर कहा कि जगदीप छोकर का निधन सिर्फ एक व्यक्ति का निधन नहीं है, बल्कि उस आवाज का मौन होना है जो भारत के लोकतंत्र की सच्चाई के लिए हमेशा बोलती रही। उन्होंने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाकर देश को दिखाया कि हमारी चुनावी व्यवस्था में क्या कमियां हैं और हमें उन्हें सुधारने की जरूरत है।


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